प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुस्साहस के लिए जाने जाते हैं, लेकिन किसान आंदोलन के बीच में किसानों के मुद्दे पर इतना बड़ा दुस्साहस करने की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि कृषि कर्ज माफी किसानों के भले का नहीं, केवल चुनावी कार्यक्रम है। माना जाता है कि 2009 में यूपीए के दोबारा सत्ता में आने की सबसे बड़ी वजह 2008 के बजट में की गई कृषि कर्ज माफी ही रही और सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट बिगाड़ने में 2008 के बजट में तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम की कर्ज माफी का एलान भी महत्वपूर्ण रहा और कमाल की बात कि इससे छोटे और सीमांत किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ।
इसके बाद उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी कृषि कर्ज माफी कर दी और दूसरे राज्यों में भी किसानों ने कर्ज माफी के लिए सरकारों पर दबाव बनाया, जो अभी भी गाहे-बगाहे दिखता रहता है। इसका मतलब अगर चार करोड़ किसानों को कर्ज माफी का लाभ हुआ मान लें तो भी देश का करीब 10 करोड़ किसान इस लाभ से वंचित रह गया। इसी का जिक्र सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट पर बात करते हुए किया था।
साक्षात्कार में चिदंबरम तमतमा गए
देश में किसानों और बैंकों की दशा बिगाड़ने वाले 2008 के बजट से जुड़ा एक अत्यावश्यक संदर्भ याद आ रहा है, जिसका जिक्र जरूरी है। एक समाचार टीवी चैनल पर उसके प्रबंध संपादक प्रतिवर्ष बजट के बाद वित्त मंत्री का साक्षात्कार किया करते थे या यूं कहें कि वह सालाना केवल एक ही साक्षात्कार करते थे, जिसका इंतजार सबको रहता था। खासकर बजट में की गई घोषणा को ठीक से समझने के लिए। 28 फरवरी 2008 के बजट के बाद तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार वह संपादक कर रहे थे। साक्षात्कार लाइव चल रहा था। साक्षात्कार शुरू ही हुआ था कि पी चिदंबरम उठकर खड़े हो गए। तमतमाए हुए चिदंबरम को संपादक ने संभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे।
चिदंबरम से कर्ज माफी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का सवाल
दरअसल, उस संपादक ने पी चिदंबरम से बजट में कर्ज माफी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और बैंकों को होने वाले घाटे की भरपाई के इंतजाम से सवालों की शुरुआत कर दी थी और दो बार चिदंबरम ने उस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन तीसरी बार घुमाकर सवाल पूछने पर चिदंबरम बुरी तरह से नाराज हो गए और उठकर चल दिए। इसके बाद बड़ी मुश्किल से चिदंबरम दोबारा साक्षात्कार देने को तैयार हुए और उस प्रश्न को बाहर रखने की शर्त पर ही तैयार हुए।
कृषि कर्ज माफी से किसानों का भला नहीं होने वाला
देश का हर अर्थशास्त्री लगातार कहता रहा कि कृषि कर्ज माफी से किसानों का भला नहीं होने वाला और इससे बैंकिंग तंत्र भी ध्वस्त हो जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि कृषि कर्ज माफी कितना बड़ा चुनावी कार्यक्रम था और इससे किसानों का कतई भला नहीं होता था। वरना तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम तो खुश होते कि इस पर तीन प्रश्न ही क्यों, पूरा साक्षात्कार इसी पर होना चाहिए।
कृषि कर्ज माफी को खत्म करने की बात कहना अतुलनीय साहस का प्रदर्शन
इस संदर्भ के बाद यह समझना और आसान हो गया है कि प्रधानमंत्री का कृषि कर्ज माफी को किसानों के हितों के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बताना कितना खतरनाक है, लेकिन राजनीतिक दुस्साहस के लिए जाने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवालय से पहले शौचालय की बात करके स्वच्छता अभियान को सफल बना दिया। एक और छोटा सा संदर्भ याद दिलाने से बात ज्यादा स्पष्ट हो जाएगी कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने 10 लाख रुपये से ज्यादा सालाना कमाई करने वालों को सब्सिडी खत्म करने का सुझाव मनमोहन सरकार को दिया था और वह प्रस्ताव औपचारिक तौर पर पेश होने से पहले ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। इन संदर्भो के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए कृषि कर्ज माफी को खत्म करने की बात कहना अतुलनीय साहस का प्रदर्शन है। तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ दिल्ली की सीमाओं को किसान घेरकर बैठे हुए हैं।