पीलीभीत फूलों का मानव जीवन से अटूट सम्बन्ध रहा हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी संस्कारों तथा उत्सवों में फूलों की उल्लेखनीय भूमिका रहती है। किसी भी धर्म, जाति, वर्ग, क्षेत्र विशेष के उत्सवों, विवाह व विभिन्न संस्कार, त्यौहारों में फूलों की आवश्यकता होती है। रंग बिरंगे सुगन्धित पुष्प जीवन में सुखद वातावरण का निर्माण करके प्रेरणा, स्फूर्ति तथा सृजनात्मक प्रवृतियों का विकास करते है। एक समय था जब फूलों की खेती करना तो दूर की बात, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। समय के बदलाव के साथ-साथ परिस्थितियाॅ भी बदली तथा फूलों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप मानव ने उगाना शुरू किया। विश्वस्तर पर फूलों की बढ़ती मांग के फलस्वरूप फूलों की खेती का व्यवसायीकरण पिछले कई दशकों में बढ़ता गया है, और भारत में व्यापार के लिए फूलों की खेती के महत्व को भी समझा जाने लगा। आज भारतवर्ष के 3.00 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फूलों की खेती की जा रही है। फूलों की खेती खुले खेत में तथा ग्रीनहाउस में भी उत्पादन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा फूलों की खेती की जा रही है और उससे उनकी आमदनी में बढ़ोत्तरी हो रही है।
प्रदेश में खुले फूलों की खेती करने लिए गुलाब, गुलदाउदी, क्रोसेन्ड्रा, गेंदा, चमेली, रजनीगंधा, मोलिया, गैलारडिया, गोम्फरेना, कमल, कनेर तथा चाईना ऐस्टर आदि की खेती खुले वातावरण में की जाती हैं इन पुष्पों के उत्पादन में भारत का दर्जा विश्व में द्वितीय स्थान पर है। उ0प्र0 सहित देश में लगभग 0.81 मिलियन टन फूलों का वार्षिक उत्पादन हो रहा है। उत्तर प्रदेश में खुले फूलों की खेती की जाती है। जिसके अन्तर्गत किसानों को उद्यान विभाग द्वारा आवश्यक सहायता दी जाती है।
कर्तित फूलों की खेती में मुख्यतः गुलाब, कारनेशन, गुलदाउदी, ग्लैडियोलस, लिलियम, जरबेरा, आर्किड, एन्थरिंयम, एलस्ट्रोरिया, टयूलिप