पीलीभीत पंचायत चुनाव: कुलांचे मार रही हसरते धड़ाम तो कहीं खामोश आंखों में लौटी चमक

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ऐसा चुनाव जिसमे रसूख तो बहुत कुछ हो न हो पर इससे संदेश बड़े कैनवास पर जाता है। बड़े फलक का सपना देखना हो तो घर की चाहरदीवारी में ही रुतबा देखा सुना जाता है। अगर घर में ही बात कभी नहीं बनी तो बड़ा क्षितिज बेमायने और बेमकसद हो जाता है। ऐसे कई प्रधान इस बार परिसीमन के खेल में फंसे है कि जिनको अपनी तय सीट छोड़नी पड़ेगी और दूसरा घर तलाशना होगा। इस बार जारी पंचायत चुनाव के आरक्षण ने कई दिग्गजों की हसरत पर कुठाराघात किया है तो कहीं दफन हो रही हसरतों को नए आयाम भी दिए हैं।
बड़े सपने देखने वालों को गांव स्तर पर अपनी छवि और प्रभाव को दिखाना होता है। जिस तरह छात्र राजनीति के बूते लोग बड़े बड़े ओहदे पर पहुंचते हैं। ठीक उसी तरह से गांव की राजनीति में अपना जलवा दिखाने वाले भी पारितोषिक से फलते फूलते हैं। गांवों में जहां परिसीमन बदला है वहां के ऐसे कई मामले हैं कि जहां इस बार साहब जी नहीं बल्कि मेम साहब चुनावी रण में होंगी। यह बात और है कि चुनावी स्क्रिप्ट तो साहब जी ही लिखेंगे। उनकी ही देखरेख में हिट फिल्म की पटकथा और संयोजन तय होगा। पूरनपुर के सिमराया तालुका घुंघचाई की ही बात करें तो यहां अब तक सपा के वर्तमान में जिलाध्यक्ष जगदेव सिंह जग्गा प्रधान थे पर अब उनकी सीट सामान्य महिला के लिए रिजर्व हो गई है। ऐसे में उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। वहीं पूरनपुर का कबीरपुर कसगंजा पहली बार एससी महिला सीट में फंस गया है। इसी तरह से कई और उदाहरण हैं जिन पर अब तक काबिज हुनरमंद सियासी लोग पैदल भी हो जाएंगे तो वहीं आरक्षण के नए गठजोड़ से कुछ बेजार आंखों में चमक भी आ गई है।

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