लखनऊ, घाव पर पट्टी बंधी हो तो हकीकत का पूरा अंदाजा नहीं होता। जख्म कितना गहरा है, या नासूर बन चुका है, पता नहीं चलता। कभी कुछ रिस आए तो चर्चा जरूर छिड़ जाती है। मुख्तार अंसारी को लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकारों के बीच बीते कुछ महीनों से जो चल रहा है, वह जख्म का मामूली रिसाव था, लेकिन एंबुलेंस प्रकरण ने हकीकत से पर्दा उठा दिया है। पूरी तरह उठने में जरूर समय लग सकता है।
बात इतना अधिक प्रतीकों में न करनी पड़ती यदि इस बीच पृष्ठभूमि का एक कालखंड व्यतीत न हो चुका होता। यह पुराना मर्ज है, जिसका योगी राज में काफी कुछ इलाज हो चुका है। अब सर्जरी का आखिरी दौर बाकी है तो पुरानी पट्टियां खोली जा रहीं और घाव परखे जा रहे। किसी पुराने पत्रकार या सत्ता के गलियारों में विचरने वाले फुर्सतियों से पूछिए तो बता देगा कि उत्तर प्रदेश की सियासत में यह जख्म तब गहरे हुए थे, जब अपराधी नेताओं के बूथ मैनेजमेंट का हिस्सा हुआ करते थे। कैंपेन की कमान संभालते थे, संसाधनों का जुगाड़ करते थे और बदले में सफेदपोशों का संरक्षण पाते थे। इस संरक्षण के बूते ही अपराधियों ने अपना समानांतर साम्राज्य खड़ा कर लिया।