गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी

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गुरु गोबिन्द सिंह सिक्खो के दसवें धार्मिक गुरु, योद्धा और कवी थे। उनकी शिक्षा से ही अन्य सिक्ख समुदाय गुरूद्वारा जाकर प्रार्थना करते है व गुरुवाणी पढ़ते है। वे अपने पिता गुरु तेग बहादुर के उत्तराधिकारी बने। सिर्फ 9 वर्ष की आयु में सिक्खों के नेता बने एवं अंतिम सिक्ख गुरु बने रहेी

गुरु गोबिन्द सिंह की जीवनी –
उनका सिक्ख धर्म के लिए उल्लेखनीय योगदान था। 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की उनके “पांच धर्म लेख सिखों” सिक्खो का हमेशा मार्गदर्शन करते है। सिक्ख धर्म की स्थापना में उनका योगदान उल्लेखनीय था। उन्होंने 15 वी सदी में प्रथम गुरु गुरु नानक द्वारा स्थापित गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया व गुरु रुप में सुशोभित किया।

परिवार और पूर्व जीवन

गुरु गोबिन्द सिंह, गुरु तेग बहादुर के इकलौते पुत्र थे और उनकी माता का नाम गुजरी था। गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म पटना में हुआ था। उनके जन्म के समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश के लिए गय थे। मार्च 1672 में गुरु गोबिन्द सिंह का परिवार आनंदपुर में आया, यहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा ली जिसमे उन्होंने पंजाबी, संस्कृत और फारसी की शिक्षा ली। 1675 मे उनके पिता की मृत्यु के बाद मार्च 1676 मे वे गुरु बने।

गुरु गोबिन्द सिंह के तिन विवाह
पहला विवाह माता जीतो से 21 जून 1677 को आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर उत्तर में बसंतगढ़ में हुआ।
इनसे इनके तिन पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह थे।
दूसरा विवाह उन्होंने 4 अप्रैल 1684 में माता सुंदरी से आनंदपुर में किया।
इनसे इनका एक पुत्र अजित सिंह था।
15 अप्रैल 1700 को आनंदपुर में माता साहिब देवन से उनका तीसरा विवाह हुआ।
गुरु गोबिन्द सिंह की कुछ रोचक बाते
1. गुरु गोबिन्द सिंह को पहले गोबिन्द राय से जाना जाता था। जिनका जन्म सिक्ख गुरु तेग बहादुर सिंह के घर पटना में हुआ, उनकी माता का नाम गुजरी था।

2. 16 जनवरी को गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन मनाया जाता है। गुरूजी का जन्म गोबिन्द राय के नाम से 22 दिसम्बर 1666 में हुआ था। लूनर कैलेंडर के अनुसार 16 जनवरी ही गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन है।

3. वे सिर्फ 9 वर्ष के थे जब वे दसवे सिक्ख गुरु बने। उन्होंने अपने पिता के नक़्शे कदम पर चलते हुए वे मुग़ल शासक औरंगजेब से कश्मीरी हिन्दू की सुरक्षा की।

4. बचपन में ही गुरु गोबिन्द सिंह के अनेक भाषाए सीखी जिसमें संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी और फारसी शामिल है। उन्होंने योद्धा बनने के लिए मार्शल आर्ट भी सिखा।

5. गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर के शहर में जो की वर्तमान में रूपनगर जिल्हा पंजाब में है। उन्होंने इस जगह को भीम चंड से हाथापाई होने के कारण छोडा और नहान चले गए जो की हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका है।

6. नहान से गुरु गोबिन्द सिंह पओंता चले गए जो यमुना तट के दक्षिण सिर्मुर हिमाचल प्रदेश के पास बसा है। वहा उन्होंने पओंता साहिब गुरुद्वारा स्थापित किया और वे वहाँ सिक्ख मूलो पर उपदेश दिया करते थे फिर पओंता साहिब सिक्खों का एक मुख्य धर्मस्थल बन गया। वहाँ गुरु गोबिन्द सिंह पाठ लिखा करते थे। वे तिन वर्ष वहाँ रहे और उन तीनो सालो में वहा बहुत भक्त आने लगे।

7. सितम्बर 1688 में जब गुरु गोबिन्द सिंह 19 वर्ष के थे तब उन्होंने भीम चंड, गर्वल राजा, फ़तेह खान और अन्य सिवालिक पहाड़ के राजाओ से युद्ध किया था। युद्ध पुरे दिन चला और इस युद्ध में हजारो जाने गई। जिसमे गुरु गोबिन्द सिंह विजयी हुए। इस युद्ध का वर्णन “विचित्र नाटक” में किया गया है जोकि दशम ग्रंथ का एक भाग है।

8. नवम्बर 1688 में गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर में लौट आए जोकि चक नानकी के नाम से प्रसिद्ध है वे बिलासपुर की रानी के बुलावे पर यहाँ आए थे।

9. 1699 में जब सभी जमा हुए तब गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी स्थापित की “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह”. ऊन्होने अपनी सेना को सिंह (मतलब शेर) का नाम दिया। साथ ही उन्होंने खालसा के मूल सिध्दांतो की भी स्थापना की।

10. ‘दी फाइव के’ ये पांच मूल सिध्दांत थे जिनका खालसा पालन किया करते थे। इसमें ब़ाल भी शामिल है जिसका मतलब था बालो को न काटना। कंघा या लकड़ी का कंघा जो स्वछता का प्रतिक है, कडा या लोहे का कड़ा (कंगन जैसा), खालसा के स्वयं के बचाव का, कच्छा अथवा घुटने तक की लंबाई वाला पजामा; यह प्रतिक था। और किरपन जो सिखाता था की हर गरीब की रक्षा चाहे वो किसी भी धर्म या जाती का हो।

11. औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों ने गुरु गोबिन्द सिंह को लंबे समय तक याद नही रखा अगले मुगलों के सम्राट बहादुर शाह पहले मुगल थे जो गुरु गोबिन्द सिंह के मित्र बने। उन्होंने उन्हें “भारत का संत” नाम दिया। किन्तु बादमे बहादुर शाह नवाब वजीर खान के बहकावे में आकर सिक्खो पर आक्रमण कर दिया। वजीर खान ने दो पठानों जमशेद खान और वासिल बेग से जब गुरु सो रहे थे तब उनके विश्राम कक्ष में उनपे आक्रमण करवाया।

गुरु गोबिन्द सिंह को गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से शोभित किया गया है क्योकि उन्होंने उनके ग्रंथ को पूरा किया था। गुरु गोबिन्द सिंह ने अपने प्राण 7 अक्टूबर 1708 को छोड़े।

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