योगी कैबिनेट ने पूर्ववर्ती सपा सरकार के तीन फैसले पलटे, ये लिए गए निर्णय

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली प्रदेश कैबिनेट ने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार के तीन और फैसले पलट दिए हैं। इसके साथ ही तीनों सेनाओं और अर्धसैन्य बलों में कार्यरत प्रदेश के जवानों के शहीद होने की दशा में उनके आश्रितों को सरकारी नौकरी देने, बेघरों के लिए मुख्यमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), सरकारी स्कूलों में समय से किताबें देने के लिए राष्ट्रीयकृत पाठ्यपुस्तक की मुद्रण व प्रकाशन नीति और सभी राशन दुकानों पर ई-पॉश मशीनें लगाने सहित नौ प्रस्तावों को मंजूरी दी है।

फैसला एक : नगर निकायों की नियुक्तियों के अधिकार बहाल
प्रदेश सरकार के प्रवक्ता व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बताया कि पिछली सरकार ने 2016 में यूपी नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 74 व यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 107 में संशोधन करने के लिए यूपी नगरीय स्वायत्त शासन विधि संशोधन अध्यादेश-2016 को मंजूरी दी थी। सरकार ने इस अध्यादेश को राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा था। राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति को भेजा था।

केंद्र सरकार ने इस अध्यादेश को 74 वें संविधान संशोधन की मूल भावना के अनुरूप न होने की बात कही है। इस अध्यादेश से निकायों से नियुक्तियों का अधिकार ले लिया गया था। कैबिनेट ने इस अध्यादेश को वापस लेने की मंजूरी दे दी है। बताते चलें सपा शासनकाल में इस विधेयक को तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खां के प्रभाव में लाए जाने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने विरोध भी किया था। इससे नगर निकायों की नियुक्तियों का अधिकार बहाल हो गया है।
फैसला दो : सात विद्यालयों के प्रांतीयकरण करने का फैसला रद

योगी सरकार ने निजी प्रबंध तंत्रों द्वारा संचालित छह वित्तविहीन विद्यालयों व हाईस्कूल तक अनुदानित एक विद्यालय के प्रांतीयकरण के पिछली सरकार के प्रस्ताव को भी रद कर दिया है। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा विभाग में प्रांतीयकरण की कोई नियमावली नही है। इसके बावजूद यह निर्णय लिया गया। इस पर करीब 18 करोड़ 30 लाख 54 हजार 942 रुपये का खर्च आना था।

इसके अलावा इन विद्यालयों में शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मियों के चयन की कोई मान्य प्रक्रिया नहीं है तथा गुणवत्तापरक शिक्षा प्रभावित होने की संभावना है। कैबिनेट ने 23 दिसंबर 2016 के शासनादेश द्वारा इन स्कूलों के प्रांतीयकरण के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है।

इन विद्यालयों में बीएस इंटर कालेज कुआखेड़ा खालसा ठाकुरद्वारा मुरादाबाद, श्रीमती दुर्गिया अली पब्लिक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय काजमपुर बिजनौर, खूबीराम स्मारक इंटर कालेज इकरीकला हाथरस, किरन देवी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भुवनपुर कासगंज, मातेश्वरी सोनकली देवी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चंद्राडीह बलिया, श्रीमती विमला देवी इंटर कालेज चाचरमऊ एटा व शारदा सहायक परियोजना इंटर कालेज गिरिजापुरी बहराइच शामिल हैं।
फैसला तीन : वेंडर के जरिए ही स्पीड गवर्नर लगाने की बाध्यता खत्म

कैबिनेट ने अखिलेश सरकार के एक और फैसले को पलटते हुए वाहनों में स्पीड नियंत्रित करने के लिए पुराने वाहनों में किसी संस्था के जरिए ‘स्पीड गर्वनर’ लगाने की बाध्यता की व्यवस्था खत्म कर दी है। अब कोई भी व्यक्ति मनचाहे स्थान से अपने वाहन में यह उपकरण लगवाने के लिए स्वतंत्र होगा। दरअसल, अखिलेश सरकार ने पुराने कामर्शियल वाहनों में गति नियंत्रण के लिए ‘स्पीड गर्वनर’ लगाने का फैसला किया था।

इसके लिए टेंडर के माध्यम से वेंडर का चयन किया जाना था। सरकार ने इस प्रक्रिया के लिए एक परामर्शदाता की सेवा लेने का फैसला किया था। परामर्शदाता संस्था के रूप में ‘दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी मॉडल ट्रांजिट सिस्टम’ चयनित की गई। प्रदेश सरकार का यह फैसला केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के दिशानिर्देशों के विपरीत है।

वर्ष 2016 में लिए गए इस फैसले की आवश्यकता न मानते हुए सरकार ने रद कर दिया है। इससे कंसल्टेंट संस्था का चयन भी रद हो गया है। परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछली सरकार के फैसले से चयनित वेंडर के जरिए ही वाहनों में स्पीड गर्वनर लगवाने की बाध्यता थी। योगी सरकार ने सिर्फ स्पीड गर्वनर लगाने के लिए मानक तय करने का फैसला किया है। वाहन स्वामी बाजार से मानक के मुताबिक स्पीड गर्वनर लगवाने को स्वतंत्र होगा।

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