नई दिल्ली , कभी हमारे सौरमंडल का ग्रह माना जाता था। ग्रह के तौर पर 70 वर्षों तक ये लिस्ट में शामिल भी रहा, लेकिन फिर 2006 में इससे ये खिताब वापस ले लिया गया। क्या आप जानते हैं क्यों? प्लूटो को इस ग्रहों की लिस्ट से बाहर करने या रखने को लेकर 24 अगस्त 2006 को दुनिया के करीब ढाई हजार खगोलविदों के बीच घंटों मंथन हुआ था। इस मंथन के बाद इस पर मतदान किया गया। इसमें इसको ग्रह न मानने वाले अधिक थे। इसलिए इसको ग्रहों की लिस्ट से बाहर कर दिया गया। आपको बता दें कि इस ग्रह की खोज सबसे पहले 18 फरवरी 1930 को खगोलशास्त्री क्लाइड डब्ल्यू टॉमबॉ ने अमेरिका में एरिजोना की लोवेल ऑब्जरवेटरी में की थी
वैज्ञानिकों को लगता था कि प्लूटो सूर्य की उस तरह से परिक्रमा नहीं करता है जैसे अन्य ग्रह करते हैं। ये कभी सूरज के बेहद करीब होता था तो कभी बेहद दूर होता था। इसकी परिक्रमा करने वाली कक्षा भी एक समान नहीं थी। दूर से देखने में इसकी और नैप्च्यून की कक्षा एक दूसरे को काटती हुई दिखाई देती थी। हालांकि ऐसा नहीं था। बेहद छोटा होने की वजह से इसको बौना ग्रह कहा जाता था। वैज्ञानिको को नैप्च्यून की कक्षा के इर्द-गिर्द घेरे में कई चीजें ऐसी मिलीं जो प्लूटों की ही तरह थी।
2004 और इसके बाद इसी घेरे में वैज्ञानिकों को हउमेया और माकेमाके और इस घेरे से बाहर एरिस मिला, जो प्लूटो से बड़ा था। ये ग्रह प्लूटो से काफी मेल खाती थीं। इसलिए वैज्ञानिको को लगा कि इसको ग्रह कहना सही नहीं है। 13 सितंबर 2006 को इस संघ ने प्लूटो को ग्रह की सूची से बाहर करने का एलान किया। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का ये भी कहना था कि ग्रहों की परिभाषा को दोबारा गढ़ने की जरूरत है। लेकिन यदि ऐसा होता तो कई खगोलीय पिंड भी ग्रह बन सकते थे। लिहाजा इसको खगोलीय वस्तु माना गया।
टॉमबॉ से पहले खगोलविद पर्सियल लोवेल ने भी इसके होने की संभावना जताई थी। उनका मानना था कि सौरमंडल में दूर यूरेनस और नेप्च्यून के बीच होने वाली हलचल के पीछे वहां मौजूद कोई ग्रह हो सकता है। हालांकि उस वक्त वो अपनी बात को प्रमाणित नहीं कर सके थे। 1930 में टॉमबॉ ने इसकी खोज के लिए फोटोग्राफिक प्लेटों और ब्लिंक माइक्रोस्कोप की मदद ली थी। इसके बाद इस खोज की पुष्टि दुनिया के दूसरे वैज्ञानिकों ने भी की थी। हालांकि इसकी खोज कहीं न कहीं लोवेल को ही समर्पित मानी जाती है। इसकी वजह है कि इसकी खोज का एलान लोवल के जन्मदिन वाले दिन 13 मार्च 1930 को किया गया था। इससे पहले 13 मार्च को ही यूरेनस की खोज का भी एलान किया गया था।
इस ग्रह का नाम ऑक्सफॉर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11वीं की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। इस छात्रा का मत था कि रोम में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं। इस ग्रह पर भी हमेशा अंधेरा रहता है, इसलिए इसका नाम प्लूटो रखना सही होगा। वैज्ञानिक इस छात्रा के मत से पूरी तरह से सहमत थे। इसलिए उसके सुझाए नाम को ही अंतिम माना गया। आपको बता दें कि प्लूटो 248 साल में सूरज का एक चक्कर पूरा करता है। इसके पांच उपग्रह हैं, जिनमें सबसे बड़ा उपग्रह शेरन है। इसकी खोज 1978 में हुई थी। इसके बाद 2005 में हायडरा और निक्स, 2011 में कर्बेरास 2011 और 2012 में सीटक्स को खोजा गया था। इस ग्रह का वायुमंडल मीथेन, नाइट्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना है। परिक्रमा के दौरान जब ये सूर्य से दूर होता है तो इस पर ठंड बढ़ने लगती है इसपर मौजूद गैस बर्फ बनकर सतह पर जम जाती हैं।