आरबीआई ने लोकपाल को कई अधिकार दिए हैं। शिकायतों पर गंभीरता से विचारकर दोनों पक्षों में सहमति बनवाना प्रमुख कार्य है। उसे यह ध्यान भी रखना है कि उसके पास आई जानकारी गोपनीय रहे। संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी कोई जानकारी वह किसी और से साझा नहीं करेगा। जिस भी बैंक शाखा के खिलाफ शिकायत आएगी, उसके नोडल अधिकारी के नाम लोकपाल कार्यालय से शिकायत की एक कॉपी निर्देशों के साथ भेजी जाती है। फिर नोडल अधिकारी शिकायतकर्ता और बैंक के बीच सुलह करवाने का प्रयास करता है। लोकपाल मामला सुलझाने के लिए ऐसी किसी भी प्रक्रिया को आपना सकता है, जिसे वह न्यायोचित समझे। इसके अलावा लोकपाल को लगता है कि किसी मामले में दोनों पक्षों को समझौता कर लेना चाहिए। और दोनों पक्ष उसके इस फैसले पर तय समय में अमल नहीं करते हैं तो वह शिकायत को रद्द कर सकता है।
इससे जुड़ी खास बातें…
आपकी शिकायत रद्द करने के कुछ कारण
लोकपाल को लगता है कि शिकायत सिर्फ परेशान करने के लिए है। बगैर किसी कारण या दुर्भावना से प्रेरित होकर की गई है तो वह उसे अस्वीकार कर सकता है।
उसे लगे कि मामला अधिकार क्षेत्र से बाहर है। या सबूत अधूरे लगें, संबंधित व्यक्ति बयान देने हाजिर न हो अथवा शिकायत कार्रवाई के लायक न हो।
उसे लगे कि इस मामले में निर्णय नहीं दिया तो भी चलेगा, क्योंकि इससे शिकायतकर्ता को कोई लाभ या हानि नहीं होगी। या उसे लगता है कि इस विषय पर कार्रवाई उचित नहीं है तो लोकपाल निर्णय अंतिम होगा।
लोकपाल की शक्तियां
शिकायत सही पाए जाने पर लोकपाल ग्राहक की पीड़ा, उसे हुई मानसिक परेशानी तथा शिकायतकर्ता द्वारा किए गए खर्च के लिए अधिकतम एक लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश जारी कर सकता है।
उसे यह शक्ति नहीं है कि ऐसा कोई अवॉर्ड पारित करे जो ग्राहक को हुई हानि से अधिक राशि का हो। इसकी अधिकतम सीमा 10 लाख रु. तक है। अवॉर्ड पारित करने की एक सीमा तय है।
वरना मामला रद्द हो जाएगा
जिस बैंक के खिलाफ लोकपाल ने कोई फैसला दिया है, वह बैंक पर तब तक लागू नहीं माना जाएगा, जब तक ग्राहक पत्र जारी होने के 15 दिन के भीतर ‘मामला निपटान का स्वीकृति-पत्र’ नहीं दे देता। ग्राहक ने अपनी व्यस्तता के चलते यहां समय का ध्यान नहीं रखा तो फैसला 16वें दिन अपने आप रद्द मान लिया जाएगा।
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