नई दिल्ली: 26 दिसंबर, 2004 का समय आपको याद है, जब ग्रेट निकोबार के इलाके में रिक्टर स्केल के पैमाने पर 9.3 तीव्रता का भूकंप आया था। यहीं से इतिहास की सबसे विनाशक सुनामी की शुरुआत हुई थी। 20 साल पहले इस सुनामी ने समुद्र तटीय 12 देशों को अपनी चपेट में ले लिया था, जिसमें कम से कम 2 लाख लोग मारे गए थे। मूंगे की खूबसूरत चट्टानों से बसे इस इलाके में अब केंद्र सरकार ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का मिशन पूरा करने में लगी है। कांग्रेस और पर्यावरणवादियों ने इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंता जताई है। आइए- जानते हैं इस प्रोजेक्ट के बारे में जिसके पूरा होने से भारत में हांगकांग जैसा शहर विकसित होने की उम्मीद जताई जा रही है।
क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट, क्या है अहमियत
केंद्र सरकार का ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट 72,000 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। यह निकोबार द्वीप पर सबसे दक्षिणी और बड़े हिस्से पर बनाया जा रहा है। ग्रेट निकोबार द्वीप भारत की मुख्य जमीन से करीब 1,800 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है। यह बंगाल की खाड़ी में 910 वर्ग किमी के हिस्से में बन रहा है। इस द्वीप पर इंदिरा पॉइंट भी है, जो इंडोनेशिया के सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा से महज 170 किमी दूर है।
कब हुई थी शुरुआत और क्या बनना है
ग्रेट निकोबार आईलैंड प्रोजेक्ट की शुरुआत नरेंद्र मोदी सरकार ने 2021 में की थी। इस मेगा प्रोजेक्ट को अंडमान-निकोबार द्वीप समूहों के आखिरी छोर तक बनाया जाना है। इसमें मालवाहक जहाजों के लिए बंदरगाह, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, स्मार्ट सिटी और 450 मेगावॉट की गैस और सौर बिजली परियोजना स्थापित किया जाना शामिल है।
किसकी सलाह पर ये प्रोजेक्ट स्थापित किया जा रहा है
दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर देवनाथ पाठक के अनुसार, यह प्रोजेक्ट नीति आयोग की एक रिपोर्ट के आधार पर बनाया जा रहा है, जिसने ग्रेट निकोबार द्वीप की अहमियत को देखते हुए वहां पर इसकी रूपरेखा बनाई। बताया जा रहा है कि जिस इलाके में यह प्रोजेक्ट बन रहा है, वो श्रीलंका की राजधानी कोलंबो, मलेशिया के पोर्ट क्लांग और सिंगापुर से बराबर दूरी पर है।
800 से ज्यादा द्वीपों से मिलकर बना है अंडमान-निकोबार
अंडमान-निकोबार द्वीप 836 छोटे-बड़े द्वीपों से मिलकर बना है। यह दो हिस्सों में बंटा है। उत्तर में अंडमान द्वीप और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह। ग्रेट निकोबार में दो नेशनल पार्क, एक बायोस्फियर रिजर्व है। यहां पर शौंपेन, ओंगे, अंडमानी और निकोबारी जनजातियां रहती हैं। इसके अलावा कुछ गैर आदिवासी आबादी भी यहां पर रहती है। इस द्वीप में फिलहाल आठ हजार लोग रहते हैं।
रणनीतिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण है यह क्षेत्र
देवनाथ पाठक कहते हैं कि ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के जरिए ही भारत इस क्षेत्र में अतिरिक्त सैन्य बलों की तैनाती के साथ-साथ जंगी जहाजी बेड़े, जंगी विमानों और मिसाइलों की तैनाती कर सकेगा। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए इस पूरे इलाके से हिंद महासागर पर नजर रख सकेगा।
प्रशांत महासागर में भी चीन को दे सकता है मात
यह द्वीप मलक्का की खाड़ी के बेहद पास है। यह वही खाड़ी है, जहां से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच जहाज आ-जा सकते हैं। यहां पर चीन की पहले से मौजूदगी है, ऐसे में अगर इस इलाके में यह प्रोजेक्ट पूरा कर लेता है तो भारत चीन की नीयत को मात दे सकता है।
ड्रैगन क्यों बन रहा है इस क्षेत्र में खतरा
प्रोफेसर देवनाथ पाठक के अनुसार, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर ऐसा क्षेत्र है, जो भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और नौसेना इस पूरे क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाने की फिराक में है। दरअसल, चीन ने भारत तक पहुंचने वाले हर समुद्री चेक पॉइंट्स जैसे मलक्का की खाड़ी, सुंडा और लंबक की खाड़ी में अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ा रखी है, जो भारत के लिए बेहद टेंशन की बात है। इसके अलावा, म्यांमार के कोको द्वीप में चीन ने मिलिट्री फैसिलिटी बनाई है, जो अंडमान-निाकोबार द्वीप समूह से महज 55 किलोमीटर ही दूर है।
ग्रेट निकोबार द्वीप पर यह प्रोजेक्ट बनाने के क्या हैं खतरे
बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के बनने से करीब 10 लाख पेड़ों की बलि दी जाएगी, जो वहां बड़ा पर्यावरण संकट बन सकता है। इसके अलावा पहले से लुप्त होने के संकट से जूझ रही शौंपेन और निकोबारी जनजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसकी संख्या महज सैकड़ों में ही है। शौंपेन जनजाति तो आज भी शिकार करके ही जीवनयापन करती है। यह आधुनिक दुनिया से कोसों दूर है।
क्या यह जंगल के कानून का खुला उल्लंघन है
यह प्रोजेक्ट फॉरेस्ट राइट्स एक्ट, 2006 का खुला उल्लंघन भी माना जा रहा है, जिसके तहत शौंपेन जनजाति ही यहां के जंगलों की असल मालिक है। इस जनजाति की आबादी महज 300 ही बची है।
द्वीप के पर्यावरण को भी है खतरा
माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के बनने से द्वीप के पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच सकता है। कोरल रीफ यानी मूंगे की चट्टानें नष्ट हो सकती है, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता है। साथ ही यहां के खास निकोबार मेगापोड पक्षियों और लेदरबैक कछुओं के भी विलुप्त होने का संकट गहरा सकता है, जो गैलेथिया खाड़ी में अपना घर बनाकर रहते हैं। इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट के बनने से भूकंप आने की आशंका बढ़ सकती है।