कोरोना वायरस संक्रमण से तनाव लेने वाले लोगों को मौत का ज्यादा खतरा

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कोरोना वायरस को लेकर अबतक सैकड़ों तरह के शोध और अध्ययन सामने आ चुके हैं। इनमें इस वायरस की प्रकृति और महामारी के लक्षणों से लेकर इसके इलाज की संभावना तलाशे जाने संबंधित रिसर्च और स्टडी शामिल हैं। इसी कड़ी में एक नई रिसर्च स्टडी में कोरोना वायरस और तनाव के बीच के संबंध के बारे में पता चला है। इस स्टडी में खुलासा हुआ है कि जिन कोरोना मरीजों में तनाव संबंधित एक हार्मोन का स्तर ज्यादा होता है, संक्रमण से उनकी मौत होने का जोखिम ज्यादा होता है। द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में प्रकाशित एक स्टडी में शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है।

लंदन के इंपीरियल कॉलेज में हुई स्टडी में खुलासा हुआ है कि कोरोना पॉजिटिव जिन मरीजों में कॉर्टिसोल हार्मोन का स्तर सामान्य से ज्यादा पाया गया, कोरोना संक्रमण से उनकी जान जाने का खतरा ज्यादा है। मालूम हो कि कोर्टिसोल हार्मोन का सीधा संबंध तनाव से है। जब हमें तनाव होता है तो हमारी बॉडी कोर्टिसोल हार्मोन पैदा करती है। तनाव का स्तर जितना ज्यादा होगा, शरीर में कोर्टिसोल का स्तर भी उतना ही ज्यादा पाया जाएगा। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, स्वस्थ लोगों के शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का स्तर 100-200 nm/L होता है। वहीं, जब इंसान सो रहा होता है तो उसके शरीर में कोर्टिसोल का स्तर जीरो होता है। तनाव की स्थिति में यही स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा बढ़ता जाता है। ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमण खतरनाक होता है। 

इस स्टडी के दौरान 535 लोगों को ऑब्जर्वेशन में रखा गया था। इनमें से 403 लोग कोरोना पॉजिटिव थे। कोरोना मरीजों में कोर्टिसोल का स्तर ज्यादा पाया गया। जिन कोरोना मरीजों में कोर्टिसोल लेवल 744 या उससे कम था, वह औसतन 36 दिनों तक सर्वाइव किए, जबकि 744 से ज्यादा कोर्टिसोल लेवल वाले मरीज 15 दिनों तक ही सर्वाइव कर पाए।

पहले के कई शोध अध्ययनों में बताया जा चुका है कि तनाव बढ़ने से कई बीमारियों का तो खतरा होता है, लेकिन इस स्टडी ने यह भी जोड़ दिया है कि अधिक तनाव लेने वाले लोगों की कोरोना संक्रमण के चलते जान जाने का भी बड़ा खतरा है। इस अध्ययन के जरिए लोगों को कम तनाव लेने की सलाह दी गई है। 

अभी हाल ही में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ताजा रिसर्च में इस बात की पुष्टि की है कि डेक्सामेथासोन नाजुक हालत में पहुंचे कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा 35 फीसदी तक कम करती है। दरअसल, यह दवा भी इंसान के शरीर में कोर्टिसोल के स्तर को ही कम कर के मरीजों की जान बचाती है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस डेक्सामेथासोन दवा की सराहना की है। यह दवा सस्ती भी है और आसानी से उपलब्ध भी है। यह एक स्टेरॉयड है, जिसका इस्तेमाल 1960 से किया जा रहा है। अस्थमा, एलर्जी और कुछ खास तरह के कैंसर आदि रोगों में इसका प्रयोग किया जाता रहा है और अब भारत में भी कोरोना मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल हो रहा है। 

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