केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही अपनी एक राय रख दी है। किसी भी राजनीतिक दल में दोषी करार दिए गए नेता को पार्टी में अहम पद दिया जाए या नहीं इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल की है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही इस मामले में केंद्र सरकार बोल पड़ी।
केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा कानून में संशोधन के लिए कोर्ट की ओर से सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। केंद्र का ये भी कहना है कि चुनाव आयोग के पास ऐसी शक्तियां नहीं है कि वो ऐसी किसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दे जिसके प्रमुख दोषी साबित हो चुके राजनेता हैं।
सुप्रीम कोर्ट पहले कह चुका है कि किसी अपराधी या भ्रष्ट व्यक्ति को किसी राजनीतिक दल की अगुआई करने देना लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ है क्योंकि ऐसे ही व्यक्ति के पास चुनाव के लिए उम्मीदवारों को चुनने की शक्ति होती है।
इससे पहले कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में यह बात कही थी कि दोषी करार दिए जा चुके लोगों की ओर से राजनीतिक दलों के गठन पर रोक लगाई जानी चाहिए। इससे तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सहयोगी रह चुकीं शशिकला जैसे नेता पर असर पड़ेगा।
केंद्र सरकार की तरफ से ये भी दलील दी जा रही है कि चुनाव सुधार करना एक लंबी प्रक्रिया है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि किसी भी संशोधन को लाने से पहले विधि आयोग की सिफारिश जरूरी है। ऐसे में राजनीतिक दलों में पदाधिकारियों को चुने जाना उनकी आजादी है।
भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ऐसे आरोपी लोगों के किसी पार्टी में अहम पद संभालने पर सवाल उठाया था। याद दिला दें कि कांग्रेस ने अपने महाधिवेशन में भी भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का नाम लेते हुए ऐसे सवाल खड़े किए थे।