दलों के ‘प्रतीक-चिन्ह’ का “चुनाव-चिन्ह” में रूपांतरण “अंतिम-आदमी” की अवसर की समता के विपरीत: सबल अधिवक्ता संघर्ष मंच

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लखनऊ। सबल अधिवक्ता संघर्ष मंच के संयोजक अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त, राज्यों एवं संघ शासित राज्यों के आयुक्त के समक्ष अपील दायर करके निर्णय किए जाने की मांग की है उनका कहना है कि “चुनाव-चिन्ह” का संबंध केवल चुनाव से होता है इसलिए इसका प्रयोग केवल चुनाव के दौरान ही किया जाना चाहिए क्योंकि यह मतदातओं को आयोग द्वारा अपनी पसंद के प्रत्यासी को पहचानकर मत देने की एक सुविधा मात्र है जिसका प्रयोग आयोग द्वारा आवंटित किए जाने के उपरांत निर्धारित अवधि तक ही संभव है l

विजय कुमार पाण्डेय ने अपनी मांग में कहा कि पंजीकृत मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों के लिए चुनाव-चिन्ह चुनाव आयोग के पास आरक्षित हैं जिसका प्रकाशन अधिसूचना के माध्यम से आयोग द्वारा किए जाने के उपरांत दल-नामित प्रत्यासी को आवंटित किया जाता है, दलों द्वारा ए.बी.फार्म भरे जाने के बाद आयोग द्वारा आवंटित किए जाने से यह स्पष्ट है कि चुनाव-चिन्ह आयोग के पास आरक्षित होता है न कि पंजीकृत मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों को हमेशा प्रचारित करने के लिए प्रदान कर दिया गया है, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है l विजय कुमार पाण्डेय ने जोर देते हुए कहा कि पार्टियों द्वारा प्रचारित चिन्ह पार्टी का प्रतीक-चिन्ह हो सकता है लेकिन उसे चुनाव आने पर “चुनाव-चिन्ह” में कैसे तब्दील किया जा सकता है, यदि यह चुनाव-चिन्ह है तो इसका प्रयोग आवंटन के पहले कैसे हो सकता है यदि ऐसा हो रहा है तो यह संविधान प्रदत्त मूलभूत अधिकारों, अवसर की समता, लोकतान्त्रिक मूल्यों, उद्देश्यों एवं संवैधानिक अवधारणा के विपरीत है । जबकि निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं हो सकती निर्वाचन का पर्यवेक्षण, निर्देशन, नियंत्रण तथा आयोजन करवाने की शक्ति मे अवसर की समता आधारित मुक्त तथा निष्पक्ष चुनाव आयोजित करवाना भी निहित है l मंच के प्रवक्ता आर.चंद्रा ने कहा कि निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिये निर्वाचन आयोग असीमित शक्ति रखता है यद्यपि प्राकृतिक न्याय, विधि का शासन तथा उसके द्वारा शक्ति का सदुपयोग किया जाना अनिवार्य है लेकिन “चुनाव-चिन्ह” और पंजीकृत राजनीतिक दलों के “प्रतीक-चिन्ह” का पारस्परिक रूपांतरण देश के “अंतिम-आदमी” के अवसर की समता के अधिकार और मताधिकारियों में भ्रम उत्पन्न करता है कि वह इसे “चुनाव-चिन्ह” के रूप में स्वीकार करे या पंजीकृत राजनीतिक दलों के ‘प्रतीक’ के रूप में इस भ्रम को दूर करना आयोग का उत्तरदायित्व है जिससे अवसर की समता आधारित चुनाव-प्रणाली की स्थापना देश में हो सके इसकी एक प्रति उच्चतम-न्यायालय के मुख्य-न्यायधीश को भी प्रेषित की गई है l

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