‘एक ही छत के नीचे हो – अब सब धर्मों की प्रार्थना’

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(1) धर्मों के बीच में बढती हुई दूरियों का कारण मानव का धर्म के प्रति अज्ञानता है!

आज धर्म के नाम पर बढ़ती हुई दूरियाँ सिर्फ अज्ञानता के कारण है। विश्व के अनेक देशों में आज अज्ञानतावश विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोगों के बीच टकराव बढ़ते ही जा रहें हैं। जबकि सभी धर्मों का उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति के हृदय में प्रेम व एकता की भावना को बढ़ाकर सारी पृथ्वी पर आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना करना है। वास्तव में सभी धर्मो का स्रोत एक ही परमपिता परमात्मा है और हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हंै और जब हम सभी एक ही परमात्मा की संतानें हैं, तो हमारे धर्म अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? लैटिन भाषा में धर्म यानि रिलीजन के मायने जोड़ना होता है अर्थात जो जोड़े वह धर्म है तथा जो तोड़े वह अधर्म है।

(2) तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है!

रामायण में तुलसीदास जी ने लिखा है कि ‘जब जब होई धर्म की हानि-बाढ़हि असुर, अधम अभिमानी। तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा – हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।। अर्थात जब-जब धर्म की हानि होती है और संसार में असुर, अधर्म एवं अन्यायी प्रवृत्तियों के लोगों की संख्या सज्जनों की तुलना में बढ़ जाने के कारण धरती का संतुलन बिगड़ जाता है, तब-तब परम पिता परमात्मा कृपा करके धरती पर अपने संदेश वाहकों (अवतारों) कृष्ण, बुद्ध, अब्राहीम, मुसा, महावीर, जरस्थु, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह आदि को मानवता का मार्गदर्शन कर समाज को सुव्यवस्थित करने के लिए युग-युग में विविध रूपों में भेजते रहे हैं।

(3) सभी संदेश वाहकों (अवतारों) को दिव्य ज्ञान एक ही परमात्मा से प्राप्त हुआ है!

युग-युग में आये इन सभी अवतारों को दिव्य ज्ञान एक ही परमपिता परमात्मा से प्राप्त हुआ है। उदाहरण के लिए परमपिता परमात्मा ने 5000 वर्ष पूर्व कृष्ण की आत्मा में गीता के माध्यम से ‘न्याय’ का दिव्य ज्ञान भेजा। पुनः 2500 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने भगवान बुद्ध की आत्मा में त्रिपटक के माध्यम से ‘सम्यक ज्ञान’ व समता का दिव्य ज्ञान भेजा। 2000 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने कठोर मानव जीवन को करूणामय जीवन बनाने के लिए प्रभु ईसा मसीह की आत्मा में बाइबिल का ज्ञान भेजा। 1400 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने हज़रत मोहम्मद की आत्मा में कुरान के माध्यम से ‘भाईचारे’ का दिव्य ज्ञान भेजा। 400 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने स्वार्थपूर्ण मानव जीवन को त्याग (सच्चा सौदा) का पाठ पढ़ाने के लिए गुरू नानक देव जी की आत्मा में गुरूग्रंथ साहिब के माध्यम से ‘त्याग’ का दिव्य ज्ञान भेजा तथा लगभग 200 वर्ष पूर्व उसी परमात्मा ने मानव जीवन में बढ़ती हुई दूरियों को समाप्त कर एकता का पाठ मानव जाति को पढ़ाने के लिए बहाउल्लाह की आत्मा में किताबे अकदस का ज्ञान भेजा।

(5) परमात्मा का धर्म और प्राणी का धर्म एक ही होता है!

गीता में जब भगवान श्रीकृष्ण से उनके शिष्य अर्जुन ने पूछा कि भगवान! आपका धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को बताया कि मैं सारी सृष्टि का सृजनहार हूँ। इसलिए मैं सारी सृष्टि के प्राणियों से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता हूँ। इस प्रकार मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य सारी सृष्टि के प्राणी मात्र से प्रेम करना है। इसके बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन् मेरा धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरी आत्मा के पुत्र हो। इसलिए जो मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य है वही तुम्हारा भी धर्म अर्थात कर्तव्य है। अतः सारी मानव जाति की भलाई करना ही तुम्हारा भी धर्म अर्थात् कर्तव्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस प्रकार तेरा और मेरा दोनों का धर्म एक ही है।

(6) धर्म शाश्वत एवं अपरिवर्तनीय है!

परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये किसी भी महान अवतार ने कोई अलग धर्म नहीं दिया है। जिस प्रकार से परमपिता परमात्मा शाश्वत और अपरिवतर्नीय है उसी प्रकार से उसका धर्म भी शाश्वत और अपरिवतर्नीय है। परमपिता परमात्मा का जो धर्म है, वही धर्म उसकी सभी संतानों का भी है। मनुष्य का सदैव से एक ही धर्म (कर्तव्य) रहा है – प्रभु इच्छाओं को जानना तथा उन पर चलना। पवित्र पुस्तकों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस आदि में एक ही परमपिता परमात्मा के द्वारा भेजी गई न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग एवं हृदयों की एकता की शिक्षाओं को जानना तथा उसके अनुसार संसार में रहकर पवित्र भावना से प्रभु की इच्छाओं और आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना ही हर प्राणी का धर्म है। इस प्रकार प्रभु की इच्छाओं को जानकर तथा उनके अनुसार कार्य करने के अलावा किसी भी प्राणी का और कोई भी दूसरा धर्म नहीं है।

(6) प्रार्थना कहीं भी करें सुनने वाला ईश्वर एक ही है!

आत्म पुत्र होने के कारण हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं। उस परमपिता परमात्मा की प्रार्थना हम मंदिर में करें, मस्जिद में करें, गिरजाघर में करें या गुरूद्वारे में करें, और चाहे किसी भी भाषा में करें, हमारी प्रार्थनाओं को सुनने वाला ईश्वर एक ही है। अलग-अलग स्थानों, भाषाओं, वेश-भूषाओं में परमपिता परमात्मा को याद करने से धरती पर यह अज्ञान फैल गया है कि धर्म एक नहीं अनेक हैं। परमपिता परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए किसी विशेष प्रकार की वेश-भूषा, भाषा, जाति-धर्म, स्थान आदि से कोई लेना-देना नहीं है।
(7) ‘एक ही छत के नीचे हो-अब सब धर्मों की प्रार्थना’ः-
अज्ञानता के कारण आज एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये संदेश वाहकों (अवतारों) को अलग-अलग मानने के कारण ही धर्म के नाम पर चारों ओर जमकर दूरियां बढ़ रही है, जबकि सभी अवतार एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये हैं। इस प्रकार हम सब एक ही परमात्मा की संतानें हैं। इसलिए स्कूलों में बच्चों एवं टीचर्स के द्वारा की जाने वाली सामूहिक प्रार्थना की तरह ही अब समय आ गया है जबकि समाज में सभी धर्मों, जातियों एवं सम्प्रदायों के लोग एक ही जगह पर इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से एक ही परमपिता परमात्मा की प्रार्थना करें और यही प्रभु-प्रार्थना करने का सबसे सही तरीका भी है।

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