फंगस के 66 फीसदी मरीज अस्पताल नहीं, घर में ले रहे थे उपचार

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कोरोना मरीजों में फैलने वाले फंगस के अब धीरे-धीरे कारण पता चलने लगे हैं। पिछले तीन सप्ताह के अनुभवों के आधार पर अब अस्पतालों का कहना है कि फंगस के तीन में से दो मरीज अस्पताल नहीं, बल्कि होम आइसोलेशन वाले हैं जो घर बैठे कोरोना का उपचार ले रहे थे। इन मरीजों में पहले लक्षण हल्के थे लेकिन बाद में वह गंभीर भी हुए। ज्यादातर मरीजों ने बताया है कि उन्हें जब कोरोना हुआ तो फोन पर ही चिकित्सीय सलाह ली थी। इनमें से 65 फीसदी मरीजों ने स्वीकार किया है कि उन्हें जानकारी नहीं थी कि कौन सी दवा में स्टेरॉयड है यहां तक कि मरीजों को यह भी नहीं पता था कि उन्हें पहले मधुमेह था।
एम्स दिल्ली के डॉ. विवेक ने बताया कि अब तक उनके यहां 200 से अधिक फंगस के मामले सामने आए हैं। अभी तक चिकित्सीय अध्ययन शुरू नहीं किया गया है लेकिन मरीजों से बातचीत के आधार पर उनका अनुमान है कि 70 से 80 फीसदी मरीज होम आइसोलेशन वाले ही हैं जिन्हें बाद में फंगस की शिकायत हुई है।
व्हाट्सएप पर मिली दवाओं की सूची का सेवन पड़ा भारी
नई दिल्ली के ही लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के पूर्व निदेशक डॉ. एनएन माथुर ने कहा कि ज्यादातर लोगों को पहले मधुमेह के बारे में जानकारी नहीं थी। इन्होंने अपनी जान पहचान के डॉक्टर से चिकित्सीय परामर्श फोन पर किया और उन्होंने इन्हें दवाएं दे दीं। वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) के डॉ. अमित बताते हैं कि उनके यहां कुछ मामले ऐसे भी पता चल रहे हैं कि किसी के भाई तो किसी के पिता ने व्हाट्सएप पर दवाओं की सूची भेज दी और उनके सेवन के लिए कहा।
जोधपुर एम्स के डॉ. अमित गोयल ने बताया कि उनके यहां भी होम आइसोलेशन वाले ज्यादातर मामले हैं। इन मरीजों में औद्योगिक ऑक्सीजन को लेकर अभी तक प्रमाण नहीं है लेकिन फोन या सोशल मीडिया से सलाह लेने के बाद दवाओं के सेवन करने के मामले हैं।
ज्यादातर राज्यों से लगभग एक जैसे केस
आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फंगस को महामारी अधिनियम में लाने के बाद राज्यों से दैनिक मामलों की रिपोर्टिंग शुरू हो चुकी है। अभी तक करीब 16 हजार से ज्यादा मामले हैं। फंगस के कारणों को लेकर अभी तक कागजों में कोई वजह नहीं है लेकिन फंगस का इलाज कर रहे डॉक्टरों से बातचीत में उन्हें लगभग एक जैसे मामले ही पता चल रहे हैं।
अभी तक ऑक्सीजन, सिलिंडर या अन्य कारण तो पता नहीं चला लेकिन स्टेरॉयड, अनियंत्रित मधुमेह, सोशल मीडिया पर चिकित्सीय सलाह का पर्चा इत्यादि कारण जरूर सुनने में आ रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि अगले दो से तीन महीने में इस पर अध्ययन सामने आने लगेंगे।

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