150वीं गांधी जयंती एवं अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (2 अक्टूबर) पर हार्दिक बधाइयाँ
‘‘ऐसा मस्तिष्क बनाओ, जैसा था बापू का’’
‘‘एक ही छत के नीचे हो अब सब धर्मों की प्रार्थना’’
‘अहिंसा’ के विचार से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा साकार होगी!
– डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) यूएन ने महात्मा गांधी के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया:-
अहिंसा के व्यापक प्रयोग के जरिये विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को स्वीकारने के लिए ही शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व भर में प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया था। मौजूदा विश्व-व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव को बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को भारी संख्या में सदस्य देशों का समर्थन मिलना विश्व में आज भी गांधीजी के प्रति सम्मान, उनके विश्वव्यापी विचारों और सिद्धांतों की नीति की प्रासंगिकता को दर्शाता है।
(2) गांधी जयन्ती की पूर्व संध्या पर विशाल ‘प्रभात फेरी’ तथा भव्य समारोह आयोजित:-
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के लगभग 3000 शिक्षक-शिक्षिकाएं व कार्यकर्ता ने खादी के स्वेत वस्त्र पहनाकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती एवं अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलवार 1 अक्टूबर, 2019 को प्रातः 8.00 बजे से विशाल ‘प्रभात फेरी’ निकालकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों को प्रचारित-प्रसारित किया। सी.एम.एस. शिक्षकों की प्रभात फेरी गोमती नगर विस्तार स्थित मकदूमपुर पुलिस चैकी से सी.एम.एस. गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) आॅडिटोरियम तक निकाली गयी। इस विशाल प्रभात फेरी का नेतृत्व विद्यालय के निदेशिका डा. (श्रीमती) भारती गाँधी, सी.एम.एस. प्रेसीडेन्ट प्रो. गीता गाँधी किंगडन एवं सी.एम.एस. के डायरेक्टर आॅफ स्ट्रेटजी, श्री रोशन गाँधी द्वारा किया गया। जबकि सी.एम.एस. के विभिन्न कैम्पस की प्रधानाचार्याओं समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रशासनिक अधिकारी व अन्य प्रबुद्ध जन अपनी भागीदारी दर्ज की। सी.एम.एस. गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) आॅडिटोरियम पहुँचकर सी.एम.एस. शिक्षकों की प्रभात फेरी एक भव्य समारोह में परिवर्तित हो गयी, जहाँ महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती की पूर्व संध्या पर गांधी जी की शिक्षाओं से ओतप्रोत रंगारंग शिक्षात्मक-साँस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। श्री चैधरी उदयभान सिंह, राज्यमंत्री, खादी एवं ग्रामोद्योग, उ.प्र. ने इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारकर सभी को महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
(3) अहिंसा की शिक्षा के एक पूरे युग का जन्म 2 अक्टूबर को मोहन के रूप में हुआ था:-
महात्मा गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। हम गांधी जी की 150वीं जयन्ती मना रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता अभियान महात्मा गांधी के सपनों से ही प्रेरित है। विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने महात्मा गांधी के बारे में कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को इस पर यकीन नहीं होगा कि धरती पर ऐसा भी हाड़-मांस का बना कोई आदमी कभी रहा होगा। श्री मोदी ने गांधी जयन्ती के मौके पर देश भर में होने वाली दो किलोमीटर की दौड़ में ‘‘जाॅगिंग और पलॅगिंग’’ करने को कहा है। उन्होंने कहा कि देश ने एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त होने का संकल्प लिया है। हम जाॅगिंग भी करें और रास्ते में पड़े प्लाॅस्टिक के कचरों को भी जमा करें।
(4) ‘ऐसा मस्तिष्क बनाओ, जैसा था बापू का, जैसा था गाँधी का’ :-
महात्मा गाँधी के अहिंसा के विचार एवं आदर्श को अपनाकर आज सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना की जा सकती है। हमारे विद्यालय के बच्चे प्रतिवर्ष गांधी जयन्ती के अवसर पर सारी दुनियाँ के लोगों से महात्मा गाँधी के सत्य, अहिंसा, सादगी आदि महत्वपूर्ण विचारों को अपनाने तथा उनके बताये हुए रास्ते पर चलने का आह्वान करते हैं। ‘ऐसा मस्तिष्क बनाओ, जैसा था बापू का, जैसा था गाँधी का’ गीत के माध्यम से बच्चों को संकल्प कराया जाता है कि वह अपने मस्तिष्क को महात्मा गांधी के तरह सामाजिक, मानवीय एवं आध्यात्मिक बनायेंगे। महात्मा गाँधी ने चरखा चलाकर एकता तथा आत्मनिर्भरता का सन्देश दिया था। उन्होंने जाति प्रथा, छूआछूत, बाल विवाह, दहेज प्रथा, जनता के शोषण के लिए बनाये गये कानूनों आदि का जोरदार विरोध किया था।
(5) एक ही छत के नीचे हो अब सब धर्मों की प्रार्थना :-
महात्मा गाँधी ने बड़ी ही सरलता से तीन बंदरों के उदाहरण द्वारा सारी मानव जाति को संदेश दिया था कि (1) बुरा मत सुनो, (2) बुरा मत कहो और (3) बुरा मत देखो। गांधी जी अपने प्रिय भजनों – वैष्णवजन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे, तथा रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम! ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान! के माध्यम से सभी धर्मों को मिलजुल कर रहने की सीख देते थे। हमारा विश्वास है कि परमपिता परमात्मा ने अलग-अलग युग-युग में अपने अवतारों राम, श्रीकृष्ण, महावीर, महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह, मोहम्मद साहब, गुरू नानक देव, बहाउल्लाह आदि को उस युग की समस्याओं के समाधानों के अनुरूप शिक्षाओं के साथ धरती पर भेजा था। ये अवतार समस्त मानव जाति को मर्यादा, न्याय, अहिंसा, सम्यक ज्ञान, करूणा, भाईचारा, त्याग और हृदय की एकता का संदेश देने के लिए धरती पर अवतरित हुए थे। अब एक ही छत के नीचे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा, बौद्ध विहार, बहाई मंदिर आदि विभिन्न पूजा स्थलों का प्रतीक स्थल बनाकर सभी धर्मों की एक साथ मिलकर सर्व-धर्म प्रार्थना होनी चाहिए। इससे सारी मानव जाति में संदेश जायेगा कि सभी धर्मों का स्रोत एक ही परमपिता परमात्मा है। हमारे विद्यालय में विगत 60 वर्षों से पढ़ाई की शुरूआत सर्व-धर्म प्रार्थना से होती है। बच्चों को बालावस्था से ही सभी धर्मों की मूल शिक्षाओं से प्रेम करना सिखाया जाता है। इसका सुखद परिणाम यह है कि हमारा विद्यालय चरित्र निर्माण तथा परीक्षाफल के परिणाम के आधार पर देश का क्वालिटी शिक्षा देने वाला सर्वश्रेष्ठ विद्यालय माना जाता है।
(6) आज मानव जाति को ‘जय जगत’ के नारे को बुलन्द करने की आवश्यकता है:-
15 अगस्त, 1947 को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश लगभग 200 वर्षों से अधिक काल की अग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। गांधीजी ने अहिंसा तथा सत्याग्रह की ताकत से अंग्रेजों को भारत छोड़ने को विवश कर दिया था। इसके साथ ही गांधी जी के प्रबल समर्थक सरदार पटेल ने भारत की लगभग 552 रियासतों का एकीकरण करके भारत को एक सुदृढ़ तथा संगठित राष्ट्र बनाया। भारत की आजादी की आंधी से प्रेरणा लेकर विश्व के 54 देश अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद हो गये थे। गाँधीजी ने अपने शिष्य विनोबा भावे से देश के आजाद होते ही कहा था कि अभी तक हमारा लक्ष्य अंगे्रजी साम्राज्य की गुलामी से देश को आजाद करने के लिए ‘जय हिन्द’ के नारे को बुलन्द करना था। देश के आजाद होने के साथ ‘जय हिन्द’ का हमारा लक्ष्य पूरा हो गया है और अब हमें सारे विश्व को गरीबी, अन्याय, भूख, बीमारी, अशिक्षा, आतंकवाद तथा युद्धों से बचाने के लिए ‘जय जगत’ अर्थात ‘सारे विश्व की जय हो के’ नारे को बुलन्द करने के लिए कार्य करना है।
(7) दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों का भविष्य आज की समस्या:-
21वीं सदी के युग में व्याप्त विश्वव्यापी समस्याओं को समाप्त करने के लिए महात्मा गाँधी के विचारों को अमल में लाने की आवश्यकता है। यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे ग्लोबल विलेज को गरीबी, अशिक्षा, आतंकवाद, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के दो अरब पचास करोड़ बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते।
(8) ‘जय जगत’ की भावना से ही पूरे विश्व में ‘एकता एवं शांति की स्थापना संभव:-
गांधीजी के आध्यात्मिक शिष्य संत विनोबा भावे से किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। सारे जगत की जीत कैसे होगी? विश्व के बच्चों के सुरक्षित भविष्य की खातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में युद्ध करना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत’ हो जायेगा। अर्थात यदि दो राष्ट्र मिलकर ‘जय जगत’ की भावना से आपसी परामर्श करें तो किसी एक की हार-जीत नहीं वरन् दोनों की जीत होगी। इस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को सारे विश्व में ‘जय जगत’ की भावना के अनुरूप एकता एवं शांति की स्थापना के लिए अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के साथ ही सारे विश्व के देशों के हितों को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में विकसित करना होगा।
(9) महात्मा गांधी ने विश्व में वास्तविक शांति की स्थापना के लिए बच्चों को सबसे सशक्त माध्यम बताया:-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विश्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सशक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों की शिक्षा से करनी होगी।’’ इस प्रकार महात्मा गाँधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने के लिए हमें प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा के साथ ही सार्वभौमिक जीवन-मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें ‘विश्व नागरिक’ बनाना होगा।
(10) गांधी जी ने एक स्वतंत्र राष्ट्रों के वैश्विक महासंघ की वकालत की थी:-
गांधीजी ने दुःख के साथ कहा था कि विश्व ने अपनी समस्या का समाधान परमाणु बम बनाकर खोजा है। गांधीजी का कहना था कि भविष्य में शांति, सुरक्षा और निरन्तर प्रगति के लिए संसार के सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को एक वैश्विक महासंघ की आवश्यकता है, इसके अलावा आधुनिक विश्व की समस्याओं को हल करने का कोई अन्य मार्ग नहीं है। एक ऐसे ही विश्व महासंघ के द्वारा उसके घटक देशों की स्वतंत्रता, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये जाने वाले आक्रमण एवं शोषण से बचाव, सभी पिछड़े क्षेत्रों एवं लोगों की उन्नति, विकास एवं सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए विश्व भर के संसाधनों के एकत्रीकरण जैसे कार्य सुनिश्चित किये जाने चाहिए।
(11) सारा संसार एक नवीन लोकतांत्रिक विश्व-व्यवस्था की आवश्यकता को महसूस कर रहा है:-
गांधीजी का जीवन सत्यानुसंधान था। वह निरन्तर अध्ययनशील रहते हुए कड़े अनुशासन तथा खुले दिमाग से अपने प्रत्येक कार्य का विश्लेषण करते थे। वह अपने अहिंसा, सत्य, मानवता, क्षमा, धर्मांे की एकता तथा आध्यात्मिकता के सिद्धान्तों के अनुरूप हर पल जीने का अभ्यास करते थे। वह समय की आवश्यकता के अनुसार इन सिद्धान्तों का सामाजिक जीवन में प्रयोग करते थे। आज जब हम महात्मा गांधी के जीवन तथा शिक्षाओं को याद करते हैं तो हम उनके सत्यानुसंधान एवं विश्वव्यापी दृष्टिकोण के पीछे अपनी प्राचीन संस्कृति के मूलमंत्र ‘उदारचारितानामतु वसुधैव कुटुम्बकम्’ (अर्थात पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके नागरिक है) को पाते हैं। इन मानवीय मूल्यों के द्वारा ही सारा संसार एक नवीन लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। गांधीजी ने भारत की संस्कृति के आदर्श उदारचरित्रानामतु वसुधैव कुटुम्बकम् को सरल शब्दों में ‘जय जगत’ (सारे विश्व की भलाई अर्थात जीत हो) के नारे के रूप में अपनाने की प्रेरणा अपने प्रिय शिष्य संत विनोबा भावे को दी जिन्होंने ‘जय जगत’ के सार्वभौमिक विचार को आम लोगों में अपनी अन्तिम सांस तक फैलाया।
(12) महात्मा गांधी सभी धर्मों का समान आदर करते थे:-
गांधीजी एक सच्चे ईश्वर भक्त थे। वे सभी धर्मों की शिक्षाओं का एक समान आदर करते थे। गांधीजी का मानना था कि सभी महान अवतार एक ही ईश्वर की ओर से आये हैं, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है, इसलिए हमें प्रत्येक धर्म का आदर करना चाहिए। सभी धर्म एवं सभी धर्मों के दैवीय शिक्षक एक ही परमपिता परमात्मा के द्वारा भेजे गये हैं। हम चाहे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर या गुरूद्वारे किसी भी पूजा स्थल में प्रार्थना करें हमारी पूजा, इबादत तथा प्रार्थना एक ही ईश्वर तक पहुँचती हैं। गांधीजी ने अपनी युग की सबसे प्रमुख आवश्यकता के रुप में गुलामी को मिटाया तथा बाद में उनका मिशन इस विश्व को संगठित करके आध्यात्मिक साम्राज्य धरती पर स्थापित करना था। गांधीजी के विचारों के अनुरूप हमें उनके मिशन को आगे बढ़ाते हुए हिंसामुक्त, युद्धरहित तथा आतंकवाद रहित संसार का निर्माण करना है।
(13) विश्व के सभी देश अपने-अपने संविधान में विश्व एकता के विचार को शामिल करें:-
ग्लोबल विलेज के युग में अब सारे विश्व को एक परिवार बनाने का समय आ चुका है। हम सबने इस विश्व को एक परिवार न बनाया तो आपसी विद्वेष के कारण यह सम्पूर्ण मानवजाति नष्ट हो जायेंगी। इसके लिए विश्व के सभी राष्ट्रों को भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था बनाने की पहल करनी चाहिए। इस अनुच्छेद में संसार को सुन्दर एवं सुरक्षित बनाने के लिए ‘सहयोग’, ‘परामर्श’, ‘विचार-विमर्श’, ‘न्याय की स्थापना’ व ‘कानून के पालन’ आदि की शिक्षाओं को प्रमुखता के साथ सम्मिलित किया गया है।
(14) आज बापू की सत्य, अहिंसा एवं सादगी की शिक्षायें और भी अधिक प्रासंगिक हो गयी है:-
महात्मा गांधी का कहना था कि ‘‘एक दिन आयेगा, जब शांति की खोज में विश्व के सभी देश भारत की ओर अपना रूख करेंगे और विश्व को शांति की राह दिखाने के कारण भारत विश्व का प्रकाश बनेगा।’’ आज विश्व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, परमाणु बमों का जखीरा तथा प्राकृतिक आपदायें मानव अस्तित्व को महाविनाश की ओर ले जा रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों में बापू की सत्य, अहिंसा एवं सादगी की शिक्षायें और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है।
(15) आइये, महात्मा गांधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने की पहल करें:-
यदि हमें मानव जाति को महाविनाश से बचाते हुए सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना करनी है तो (अ) परिवार, विद्यालय एवं समाज द्वारा प्रत्येक बच्चे को वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात ‘जय जगत’ की शिक्षा देकर उन्हें विश्व नागरिक बनाना होगा तथा (ब) भारत सरकार को अपनी ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की महान संस्कृति, सभ्यता एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना के लिए विश्व के नेताओं की एक बैठक भारत में अतिशीघ्र बुलाने की पहल करनी चाहिए। हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘जय जगत’ अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को साकार करने की दिशा में आगे बढ़कर उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजली दे सकते हैं।
(16) प्रधानमंत्री श्री मोदी ने विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित किया:-
हमें गर्व है अपने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर जिन्होंने 27 सितम्बर 2019 को एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वंे सत्र के अपने भाषण से भारत का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है। पीएम मोदी ने वल्र्ड लीडर की तरह अपना संदेश दुनिया को देने का सफल प्रयास किया। श्री मोदी ने अपने भाषण की शुरूआत गांधीजी की 150वीं जयन्ती मनाने से करते हुए बताया कि भारत ने हमेशा ही विश्व को बुद्ध दिए हैं, युद्ध नहीं। भारत हमेशा से विश्व शांति और एकता का प्रचारक रहा है। भारत जन-कल्याण से जग-कल्याण में विश्वास करता है। उन्होंने ये भी कहा कि विश्व के सबसे बड़े गणराज्य भारत ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरण संरक्षण में बड़ा कदम उठाया है और विश्व के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। हम प्रधानमंत्री मोदी से दुनिया के 2.5 अरब बच्चों और आगे आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व के सभी प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्रों की बैठक भारत में बुलाकर एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) की स्थापना करने की अपील करते हैं। विश्व नेताओं की इस बैठक का एजेंडा विश्व संसद के गठन के माध्यम से दुनिया की एक नयी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था तैयार करना चाहिए ताकि संसार के 2.5 अरब बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।