मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अंत: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम तट पर गंगा दशहरा के अवसर पर संत महात्माओं के साथ करीब 20 से 25 हजार श्रद्धालुओं ने आस्था की ड़ुबकी लगाई।
पांचवे चरण में लॉकडाउन खुलने से श्रद्धालुओं ने सूर्य की पहली किरण के साथ गंगा दशहरा के अवसर पर संगम में आस्था की डुबकी लगाना शुरू कर दिया। श्रद्धालुओं में महिला, पुरूष और बच्चे शामिल रहे। महिलाओं ने स्नान के बाद घाट पर सूर्य देव को अर्ध्य दिया, पूजन और दीपदान किया। कुछ महिला और पुरूष श्रद्धालुओं ने गंगा मां को दुग्ध अर्पण भी किया। संगम के अलावा अनेक घाटों पर श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। श्रद्धालु स्नान के पश्चात घाट पर बैठे तीर्थ पुरोहितों को दान देकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
घाट पर सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते श्रद्धालुओं में नहीं देखा गया। गंगा तट पर दूध और माला-फूल बेचने वालों के चेहरे खिले-खिले दिख रहे थे। उन्होने बताया कि करीब दो महीने के बाद इतनी बड़ी तादाद में लोगों को संगम तट पर एक साथ देखने का मौका मिला। गंगा दशहरा के अवसर पर उनकी भी अच्छी आमदनी हो गई।
संगम स्नान कर सूर्य को अर्ध्य और पूजा संपन्न करने के बाद श्रद्धालु निधि मिश्रा ने बताया कि करीब दो महीने बाद पहली बार गंगा जी में स्नान, पूजन करने का अवसर मिला है। यह गंगा मइया की कृपा है कि गंगा दशहरा के अवसर पर उनके दर्शन, स्नान और पूजा-पाठ करने का सौभाग्य मिला। उन्होने बताया कि उनके साथ उनके श्वसुर और सास ने भी गंगा में आस्था की डुबकी लगा कर सूर्य देव को अर्ध्य दिया और मां गंगा का दुग्ध से अभिषेक किया
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महंत नरेन्द्र गिरी, महामंत्री हरि गिरी, जूना अखाड़े के अध्यक्ष प्रेम गिरी महराज, महानिवार्णी अखाड़े के सचिव यमुना गिरी महराज समेत अनेक साधु-महात्माओं ने सूर्य की पहली किरण के साथ संगम में आस्था की डुबकी लगाई।
महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि साधु-संताों ने कोरोना संक्रमण से देश और दुनिया को मुक्त कराने के लिए मां गंगा से प्रार्थना की। उन्होने कहा कि गंगा दशहरा पर गंगा में सनान का बड़ा ही महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में आस्था की डुबकी लगाने और दान-पुण्य करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
देवनदी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के उपलक्ष्य में हर साल गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस अवसर पर आस-पास के जिलों से भी श्रद्धालु ट्रेन, बस, ट्रैक्टर से भी संगम स्नान करने पहुंचतें थे। संगम किनारे मेला सा प्रतीत होता था। लेकिन इस बार कोविड़-19 आपदा के मद्देनजर मेला वाला दृश्य अदृश्य नजर आ रहा है।
वैदिक शोध एंव सांस्कृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा आत्माराम गौतम ने बताया कि भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा में खड़े होकर मंत्र का जाप करने से पुण्यफल मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सोमवार तथा हस्त नक्षत्र होने पर यह तिथि पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हसत नक्षत में स्वर्ग से गंगा जी का आगमन हुआ, इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा जाता है। उन्होने बताया कि बराह पुराण, स्कन्द पुराण, वाल्मिकि रामायण आदि ग्रथों में गंगा अवतरण की कथा वर्णित है। आचार्य ने बताया कि यह दिन संवत्सर का सुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान कर के दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप दीप से पूजन करके दान करना चाहिए।
जल पुलिस प्रभारी कड़ेदीन यादव ने बताया कि गंगा दशहरा के अवसर पर अरैल, कालीघाट, संगम, दशासवमेध घाट समेत सभी घाटों पर करीब 20 से 25 हजार श्रद्धालुओं की भीड़ रही। सुबह भीड़ अधिक थी लेकिन सूर्य की गरमी जैसे जैसे बढ़ रही है, श्रद्धालुओं की कमी भी घाटों पर देखी जा रही है। केारोना संक्रमण के कारण केवल स्थानीय श्रद्धलुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई।
श्री यादव ने बताया कि जल पुलिस पहले से ही चौकस रही। गंगा में गोताखोर मोटरवोट से लगातार चक्रमण करते रहे1 उन्होने बताया कि सुरक्षा मद्देनजर दो प्लाटून पीएसी भी घाटों पर तैनात थी। उन्होने बताया कि गंगा में लगातार कटान होने के कारण चौकसी बढ़ाई गयी थी। किसी प्रकार की अप्रिय घटना की कही से भी सूचना नहीं मिली।