पारा चढ़ने के साथ ही उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था पटरी से उतरने लगी है। रात में बिजली की मांग में काफी इजाफा हो रहा है जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों और बुंदेलखंड को तय शिड्यूल से कम आपूर्ति हो पा रही है। बिजली की मांग में लगातार हो रही वृद्धि का असर शहरी क्षेत्रों में भी पड़ा है। राजधानी समेत तमाम शहरों में अघोषित कटौती भी हो रही है। आने वाले दिनों में बिजली संकट और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
प्रदेश में भीषण गर्मी पड़ने लगी है जिसका असर बिजली व्यवस्था पर नजर आने लगा है। अप्रैल के शुरू में ही बिजली की प्रतिबंधित मांग (शिड्यूल के अनुसार) 21,000 मेगावाट तक पहुंच रही है जबकि सभी स्रोतों से कुल मिलाकर 20,300 मेगावाट तक ही बिजली की उपलब्धता है। पीक ऑवर्स में 600 मेगावाट की आपात कटौती की जा रही है। मांग और उपलब्धता में अंतर की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों, तहसीलों और बुंदेलखंड को तय शिड्यूल से कम आपूर्ति हो पा रही है। हालांकि जिला मुख्यालय, मंडल मुख्यालय, महानगरों और उद्योगों को 24 घंटे बिजली आपूर्ति का दावा किया जा रहा है, लेकिन राजधानी समेत तमाम क्षेत्रों में अघोषित कटौती से जनजीवन पर असर पड़ रहा है।
प्रदेश के ताप बिजलीघरों से 4200-4500 मेगावाट से ज्यादा बिजली का उत्पादन हो रहा है जबकि केंद्र, निजी उत्पादकों अन्य स्रोतों से लगभग 15000-16000 मेगावाट बिजली मिल रही है। स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर (एसएलडीसी) के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल हालात नियंत्रण में हैं। लोड बढ़ने पर थोड़ी-बहुत आपात कटौती करनी पड़ रही है, लेकिन आने वाले समय में जरूर थोड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।
मांग का आकलन कराकर आवश्यकतानुसार बिजली का इंतजाम करने की कोशिश की जा रही है ताकि किसी तरह की समस्या न खड़ी हो। उधर, पावर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एम. देवराज के मुताबिक मांग में वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन अभी किसी तरह की समस्या नहीं है। लोकल फाल्ट या अन्य तकनीकी कारणों से कहीं थोड़े समय के लिए आपूर्ति बाधित हो सकती है, लेकिन मुख्यालय से सभी क्षेत्रों को तय शिड्यूल के अनुसार ही आपूर्ति की जा रही है।