लखनऊ। सीएम योगी के कर्नाटक दौरे को लेकर छिड़ी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कर्नाटक में मठ बनवा लेने की सलाह पर भाजपा ने पलटवार करते हुए उनको मोबाइल का खिलाड़ी बता दिया। अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शुक्रवार को कहा है कि बुधवार को आए आंधी-तूफान ने आगरा सहित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई है। जनधन की भीषण क्षति हुई है। सौ से ज्यादा नागरिकों और बड़ी संख्या में पशुओं की मौतें हुई हैं। सैकड़ो लोग घरो से बेघर हुए हैं ओर मलबे में दबकर तमाम लोग घायल हुए हैं। ऐसी भयंकर प्राकृतिक आपदा में भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री जी का आचरण संवेदनशून्यता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा। जब उन्हें राजधानी में रहकर इस विपत्ति से बचाव और राहत के कामों को सुनिश्चित करना था तब मुख्यमंत्री जी कर्नाटक के चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। लोग हैरत में है कि उनकी प्राथमिकता में उत्तर प्रदेश है या कर्नाटक?
भाजपा सरकार आपदा प्रबंधन के मामले में पूरी तरह विफल साबित हुई है। आंधी तूफान ग्रस्त इलाकों में बचाव और राहत के कामों के समय से शुरू न होने से लोगों के जो कष्ट बढ़े उस पर शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। जनधन की क्षति के सरकारी विवरण भी संदिग्ध हैं। अभी भी मौसम विभाग पुनः संकट आने के बारे में चेतावनी दे रहा हैं। ऐसे में भाजपा सरकार केवल निर्देश जारी करके अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझ सकती है।
भाजपा को न तो प्रदेश के विकास की चिंता है और नहीं नागरिकों की सुरक्षा को वह वरीयता देती है। पूरी भाजपा सरकार प्रदेश में अपनी साख गंवाकर भी सन् 2019 के चुनावी माहौल को गरमाए रखने में समय बर्बाद कर रही हैं। भाजपा का मंत्रीमण्डल गांवों में चैपाल लगाकर और दलितों के घर होटलों का खाना मंगवाकर सहभोज का नाटक रचने में लगा हैं। सांप्रदायिक मुद््दो को उछालने के पीछे भाजपा का उद्देश्य धु्रवीकरण की राजनीति को बढ़ावा देने की भूल कर रहे है।
समाजवादी सरकार में किसानों को किसी भी आपदा में तत्काल राहत मिलती थी। किसानों की फसल को बेमौसम बरसात एवं ओला वृष्टि से क्षति होने पर 1330.71 करोड़ रूपए की धनराशि वितरित कर करीब 30 लाख से ज्यादा किसानों को लाभान्वित किया गया था। यही नही, प्रदेश के ढाई करोड़ किसानों के लिए चलाई जा रही कृषक दुर्घटना बीमा योजना में प्रतिव्यक्ति अधिकतम आवरण राशि एक लाख रूपए से बढ़ाकर सात लाख रूपए कर दी गई थी।
उत्तर प्रदेश की विडम्बना यह है कि यहां मुख्यमंत्री न तो गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का मोह छोड़ पा रहे है और नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने में रूचि ले रहे हैं। वे प्रदेश की समस्याओं के समाधान के बजाय त्रिपुरा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल जैसे दूसरे प्रदेशों में अपनी उपस्थिति ज्यादा दर्ज कराते हैं। उत्तर प्रदेश की विपदा के गाढ़े समय में भी वे दूसरे प्रदेश में राजनीतिक एजेण्डा पूरा करने में व्यस्त दिखते हैं।
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