तीन भाषाओं में नये शायराना आयाम गढ़ती ‘नवलोकन’
एक्सपो मार्ट सभागार में नामचीन हिन्दी-उर्दू विद्वानों के संग रही अदाकार रजा मुराद की मौजूदगी
लखनऊ, ललित शैली के शायर सुहैल काकोरवी ने गजल या उर्दू शायरी में ही नहीं, हिंदी और अंग्रेजी कविता में भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा दर्ज की है। उनके प्रयास हमेशा अनूठे रहे हैं। ये कहना उर्दू के प्रख्यात समालोचक शारिब रुदौलवी का था। सुहैल काकोरवी की तीनों भाषाओं में अभिव्यक्ति को एक साथ समेटे बारहवीं किताब ‘नवलोकन’ का विमोचन यहां हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी व अदबी संस्थान के संयुक्त आयोजन में एक्सपो भवन सभागार निर्यात भवन कैसरबाग में हुआ। इस मौके पर मुख्यअतिथि के तौर पर सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता रजा मुराद मौजूद थे।
आमनामा से लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड 2015 में नाम दर्ज कराने वाले सुहैल ने नवलोकन में गालिब व इकबाल के शेर के ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’ व ‘खुदी को कर बलन्द इतना’ जैसे 70 से ऊपर आम आदमी से लेकर संसद तक गूंज रखने वाले प्रसिद्ध मिसरों को नयी दृष्टि से देखा है। प्रो.षारिब की अध्यक्षता में हुए समारोह में प्रो.षाफे किदवई ने कहा कि जोखिम लेने वाले शायर सुहैल ने किताब में मषहूर मिसरों को नया विस्तार दिया है। अभिनेता रजा मुराद ने अपने को शायरी का मुरीद बताते हुये कहा कि शायरी में चुनौती लेकर नये आयाम पेष करने के लिए रचनाकार बधाई के पात्र हैं। प्रो.सिराज अजमली ने किताब को कई मायनों में उपयोगी बताया। उर्दू की दीर्धतम छह सौ शेरों वाली मोहावराती गजल की पुस्तक नीला चाँद लिखने वाले सुहैल काकोरवी के बारे में अतहर नबी का मानना था कि ये किताब षायरी के गुलदान को पुराने फूलों की जगह नये फूलों के सजाने का खुषशगवार अमल है। किताब में तीनों जबानों का शायराना इस्तेमाल इस प्रयोग को बेमिसाल बनाता है।
स्वागत समिति की अध्यक्ष श्रीमती तहसीन उस्मानी ने आयोजन को यादगार बताया तो आईआरएस अधिकारी सुबूर उस्मानी ने सुहैल काकोरवी का शेर- ‘इंसां से मोहब्बत में हम फर्क नहीं करते, हिन्दू हो के मुस्लिम हो वो सिख हो के ईसाई’ कहते हुए उनके समस्त कृतित्व पर अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा कि समालोचक शम्सुरेहमान फारूकी ने सही लिखा है कि उन मुश्किल जमीनों में सुहैल काकोरवी साहब ने गजलें कही हैं जिनसे बचकर दूसरे निकल गए। सैकड़ों हिन्दुस्तानी मुहावरों से भरी उर्दू की सबसे लम्बी गजल की किताब नीला चाँद को साहित्य अकादमी जैसे संस्थानों कों संज्ञान में लेना चाहिये। रचनाकारों का उनका हक दिलाने में मीडिया की भी अपनी अहम भूमिका निभानी होगी।
सुहैल काकोरवी का कहना था कि कुदरत कुछ ऐसे काम मेरे सुपुर्द करती है जिनको शुरू करते वक्त मुझे यकीन नहीं होता कि ये मुझसे पूरे हो पाएंगे। इसी रचनाक्रम में एक दौर में लगा कि गालिब आकर भी सामने खड़े हो गए और अपनी गजलों पर मेरी सौ गजलें होते देखते और मुस्कुराते रहे। मेरे पढने वालों ने मुझे हौसला दिया तो प्रो.शारिब रुदौलवी व मेरे दोस्त प्रो.शाफे किदवई की प्रषंसा ने भी बल दिया। रजा मुराद ने यहां आकर इस बज्म की रौनक बढाई है। सुबूर उस्मानी के साथ मैं तरुण प्रकाश, तौसीफ सिद्दीकी, मो.अरशद और अब्दुल वली का इसलिए और भी शुक्रिया अदा करता हूँ कि शेरो अदब का मुस्तकबिल मुझसे होकर इन नौजवानों तक जा रहा है।
गुफरान नसीम के संचालन में चले कार्यक्रम में नवगीतकार डा.सुरेष ने कहा कि सुहैल की गजलों में शायरी का दिल धड़कता है। अंत में संयोजक अनवर हबीब अल्वी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर सुहैल की गजलों को कफील हुसैन ने सुरों में ढालकर वाहवाही लूटी। साथ ही कई गजलों के अंग्रेजी तजुर्मे के बाद जैनब फात्मा ने हिन्दी-उर्दू रूप सामने रखा। समारोह में शायर हसीन काजमी,षेख असद आमिर, हसन मुस्ताफ मुहम्मद, तौसीफ मोहम्मद अरशद, अब्दुल वली अंसारी, अरुणकुमार, मोहम्मद सैफ, अर्याशन, कामरान, विशाल दुबे, तिम्साल मसूद, जियाउल्लाह सिद्दीकी, डा.मसीहुद्दीन, सै.अहमद सबीह, मनीष शुक्ल, मो.अली साहिल, वकार रिजवी, मारूफ खां आदि शामिल रहे।