जश्न ए क़लाम सम्मान समारोह व मुशायरा, ‘इसको कहते हैं मुहब्बत में सियासत करना’

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मुनव्वर राना, रेहान हैदर, ओबेदुल्लाह नासिर व एस.रिज़वान सम्मानित
लखनऊ, राज्य में कांग्रेस को दूसरी भाषा का दर्ज़ा देने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी का स्मरण करते हुए ख्यातिप्राप्त रचनाकारों ने उनके सम्मान में शेरो-शायरी का शानदार दौर चलाया। आज की ये यादगार शाम गन्ना संस्थान प्रेक्षागृह डालीबाग में जन-जन की बात ग्रुप की ओर से सजी।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता अमीर हैदर की सदारत में पूरी तरह साहित्यिक रंग में रंगे इस आयोजन मे मुख्य अतिथि के तौर पर फिल्म निर्माता निर्देशक व लेखक अनुभव सिन्हा व अन्य अतिथियों ने प्रख्यात शायर मुनव्वर राना, दुबई के रेहान हैदर, सहाफी ओबेदुल्लाह नासिर, व उर्दू अकादमी उ.प्र. के सचिव एस.रिज़वान को अवार्ड, अंगवस्त्र, सम्मान पत्र इत्यादि देकर नवाज़ा।
यहां अतिथियों के तौर पर राजनीतिज्ञ रघुराज प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री राजेन्द्र चैधरी, अब्बास अंसारी, सी.पी.राय, पूर्व डीजीपी रिज़वान अहमद, डीजीपी वायरलेस पी.के.तिवारी, इंट्रिगल यूनिवर्सिटी के वीसी वसीम अख़्तर, डीआईजी सीआरपीएफ एस.एम.हसनैन, सुश्री कुलसुम तलहा, रफ़त फ़ातिमा, अतहर नबी, पूर्व प्रषासनिक अधिकारी अनीस अंसारी व मेराज हैदर इत्यादि आमंत्रित थे।
इस अवसर पर एनडी तिवारी के विलक्षण व्यक्तित्व की चर्चा करने के साथ आयोजकों व जुबैर शेख को बधाई देते हुए मुख्य अतिथि अनुभव सिन्हा ने कहा कि उर्दू ज़बान का फिल्म जगत में फिल्मों को एक दस्तावेज बनाने में अहम रोल है। ये आयोजन उर्दू के गढ़ लखनऊ में हो रहा है जिसकी संस्कृति विश्वविख्यात है। अफसोस है कि आज फिल्मों में उर्दूं जुबान का वो पुराना रुआब नहीं मिलता फिर भी अपनी फिल्मों में वे उर्दू की लज़्ज़्ात घोलने से नहीं चूकते। अध्यक्षीय वक्त्व्य में अमीर हैदर ने एनडी तिवारी के उर्दू के लिए किए गए कामों का ज़िक्र छेड़ने के साथ कहा भाषा को मज़हब से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। शषा कोई भी हो, जबान कोई भी हो, इस देश और गंगा-जमुनी तहज़ीब वाले शहर ए लखनऊ की अश्व्यिक्ति एक ही है, लक्ष्य एक ही है कि आपसी प्रेम और सौहार्द की स्थापना हो। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा, संस्कृति और साहित्य का ऐसे कार्यक्रम ही नई पीढ़ी की प्रेरणा बनेंगे। उन्होंने कहा ऐसे आयोजनों की विशेषता रही है कि यह हमें रचनाकारों के साहित्यिक योगदान से परिचित कराती है। अदब और तहजीब के इस शहर में विकास पुरुष कहलाने वाले जनाब इस मुषायरे में साहित्य जगत की शीर्षस्थ हस्तियों का शामिल होना जहां इस आयोजन की क़ामयाबी की निषानी हैै। अन्य अतिथियो ने भी आयोजन को सराहते हुए सम्मानित रचनाकारों को बधाई दी।
समारोह के दूसरे हिस्से में अमीर हैदर की सदारत और मोईन शादाब की निजामत में चले मुशायरे और कवि सम्मेलन का सुधी श्रोताओं ने देर रात तक लुत्फ़ लिया।
नामचीन शायर मुनव्वर राना ने सुनाया- चलती फिरती आंखों से अज़ां देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
इससे पहले अन्य रचनाओं के बीच मंज़र भोपाली का एक शेर था-
यकीं है मुझको जीतने का, फ़तह मेरी है
मैं गुलदस्ते बनाता हूं वो शमशीरें बनाते हैं
नईम अख्तर ने ज़िक्र किया- तेरी यादों का अब क्या तजि़्करा हो
मैं अपने हाफ़्ज़े में ख़ुद नहीं हूूं…….
ज़रा बाहों में हल्क़े और कस लो
मुहब्बत सांस लेना चाहती है
उर्दू ज़बां पर हसन काज़मी ने अदायगी की-
सब मेरे चाहने वाले हैं, मेरा कोई नहीं
मैं भी इस मुल्क़ में उर्दू की तरह रहता हूं
उनका एक और शेर था- ख़ूबसूरत हैं आंखें तेरी रात भर जागना छोड दे
खुद ब खुद नींद आ जायेगी तू सोचना छोड दे
इक़बाल अशअर का एक शेर था- ठहरी-ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई
दुनियादारी पर नज़र डालते हुए तारिक़ क़मर ने पढ़ा-
काग़ज की इक कश्ती अगर पार हो गई
इसमें समुन्दरों की कहां हार हो गई
ग़ज़लगोई करते हुए तरिक़ कमर ने आगे कहा-
सर्द पड़ जाए ख़ून पानी न हो, सब्ज़ तहज़ीब ज़ाफ़रानी न हो
नफ़रतों का इलाज मुमकिन है, गर ये बीमारी ख़ानदानी न हो
ख़ुर्शीद हैदर के शेर ने बेपनाह तालियां बटोरीं- कभी जो उनसे मुलाक़ात हो गई होती
तो आंखों ही आंखों में हर बात हो गई होती
ख़ुर्शीद हैदर का एक और शेर था- ग़ैर परों पर उड़ सकते हैं हद से हद दीवारो तक
अम्बर पर तो वही उड़ेंगे जिनके अपने पर होंगे
लियाक़त जाफ़री की पंक्तियां थीं- कितना दुश्वार है जज़्बों की तिजारत करना
एक ही शख़्स से दो बार मुहब्बत करना
जिसको तुम चाहो, कोई और न चाहे उसको
इसको कहते हैं मुहब्बत में सियासत करना
डा.नसीम निक़हत ने तरन्नुम में कहा- ग़म की ग़र्द हटाकर फिर चेहरे को सजाना पड़ता है
हम ज़िन्दा हैं लोगों को ये याद दिलाना पड़ता है
जब अजदाद की लापरवाही बूढ़ी हवेली को बिकवा दे
आने वाली नस्लों को फिर कर्ज़ चुकाना पड़ता है
उन्होंने एक दूसरी नज़्म में कहा- बंजारे हैं, रिष्तों की तिजारत नहीं करते
हम लोग दिखावे की मुहब्बत नहीं करते
शायरा आयेशा अयूब ने पढ़ा- दर्द में कमी आ जाए, इतना रो लूं कि हंसी आ जाए
आदिल रशीद ने सुनाया- हलाल रिज़्क़ का मतलब किसान से पूछो
पसीना बने बदन से लहू निकलता है
सैफ़ बाबर का कहना था- जो शख़्स अपनी नज़र में सवाल बनता है
वो ही ज़माने में अक्सर मिसाल बनता है
आगे सैफ़ का एक और शेर पढ़ा- सांसे नहीं हैं ज़िन्दा मगर नाम से तो हैं
वो याद सबको अपने किसी काम से तो हैं
इसके अलावा मुशायरे में कुछ अन्य शायरों ने भी अपनी बात रखी। अंत में आभार कन्वीनर जु़बैर शेख़ ने व्यक्त किया।

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