झूूलेलाल प्रार्थना
व्रत पालन में देव! नहीं जो कुछ उत्पात किया हो।
यदि मेरे अन्तर्मानस में कुछ भी सत्य निहित हो,
यदि मेरी वाणी में अन्तध्र्वनि का कथ्य निहित हो।
तो हों आप प्रसन्न, काट दें मेरे सारे बन्धन,
हो स्वीकार प्रार्थना मेरी वरूणदेव। अब तत्क्षण।
वैदिक युग में वरूणदेव जी जो व्रतपाल हुए हैं।
वही धर्म की रक्षा के हित झूलेलाल हुए हैं।
वरूणदेव का नये रूप् में जो अवतार हुआ था,
अत्याचारों के युग में जो अशरण-शरण हुआ था।
रूप तुम्हारा कोई भी हो, नूतन या कि पुरातन,
वरूणदेव! अब तुम्हीं हमारा कर सकते संरक्षण।
देव! तुम्हारी की छाया में यह समुदाय जिया है,
बड़ी शक्तिमय देव! तुम्हारी करूणा और दया है।
यह निर्धन नैवेद्य जुटाकर करे किस तरह अर्चन।
ज्ञात नहीं पूजा की विधि भी करें किस तरह पूजन।
प्रभा! पास में है देने को मेरे बस निश्छल मन,
करिए अब स्वीकार देव! इसको ही करता अर्पण।