पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाये तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है। जब जातक सफलता के बिल्कुल नजदीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्योतिष शास्त्र पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है।
- शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
- इस दौरान कोई वाहन या नया सामान न खरीदें।
- इसके अलावा, मांसाहारी भोजन का सेवन बिलकुल न करें। श्राद्ध कर्म के दौरान आप जनेऊ पहनते हैं तो पिंडदान के दौरान उसे बाएं की जगह दाएं कंधे पर रखें।
- श्राद्ध कर्मकांड करने वाले व्यक्ति को अपने नाखून नहीं काटने चाहिए। इसके अलावा उसे दाढ़ी या बाल भी नहीं कटवाने चाहिए।
- तंबाकू, धूम्रपान सिगरेट या शराब का सेवन न करें। इस तरह के बुरे व्यवहार में लिप्त न हों। यह श्राद्ध कर्म करने के फलदायक परिणाम को बाधित करता है।
- यदि संभव हो, तो सभी 16 दिनों के लिए घर में चप्पल न पहनें।
- ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के पखवाड़े में पितृ किसी भी रूप में आपके घर में आते हैं। इसलिए, इस पखवाड़े में, किसी भी पशु या इंसान का अनादर नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि, आपके दरवाजे पर आने वाले किसी भी प्राणी को भोजन दिया जाना चाहिए और आदर सत्कार करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में कुछ चीजों को खाना मना है, जैसे- चना, दाल, जीरा, काला नमक, लौकी और खीरा, सरसों का साग आदि नहीं खाना चाहिए।
- अनुष्ठान के लिए लोहे के बर्तन का उपयोग न करें। इसके बजाय अपने पूर्वजों को खुश करने के लिए सोने, चांदी, तांबे या पीतल के बर्तन का उपयोग करें।
- यदि किसी विशेष स्थान पर श्राद्ध कर्म किया जाता है तो यह विशेष फल देता है। कहा जाता है कि गया, प्रयाग, बद्रीनाथ में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। जो किसी भी कारण से इन पवित्र तीर्थों पर श्राद्ध कर्म नहीं कर सकते हैं वे अपने घर के आंगन में किसी भी पवित्र स्थान पर तर्पण और पिंड दान कर सकते हैं।
- श्राद्ध कर्म के लिए काले तिल का उपयोग करना चाहिए। पिंडदान करते वक्त तुलसी जरूर रखें।
- श्राद्ध कर्म शाम, रात, सुबह या अंधेरे के दौरान नहीं किया जाना चाहिए।
- पितृ पक्ष में, गायों, कुत्तों, चींटियों और ब्राह्मणों को यथासंभव भोजन कराना चाहिए।
इस प्रकार विधि विधान से श्राद्ध पूजा कर जातक पितृ ऋण से मुक्ति पा लेता है व श्राद्ध पक्ष में किये गये उनके श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं व आपके घर परिवार व जीवन में सुख, समृद्धि होने का आशीर्वाद देते हैं।