कार्तिक पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग में स्नान दान का संयोग बन रहा है। सनातन धर्म के लिए पुण्यकारी मास कहा जाने वाले कार्तिक मास में पूर्णिमा का महत्व ग्रह और नक्षत्र से बढ़ गया है। मंगलवार को भरणी नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग में मनाई जाएगी। भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक माहात्म्य है। कार्तिक पूर्णिमा को काशी में देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कई धार्मिक आयोजन, पवित्र नदी में स्नान, पूजन और दान का विधान है। ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि इस बार शुभ योग में संयोग बन रहा है।
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भगवान विष्णु की बरसेगी की कृपा : ज्योतिष विद्वान पंडित राकेश झा शास्त्री का कहना है कि पूर्णिमा तिथि पर स्नान और दान से भगवान विष्णु की अपार कृपा बरसती है। मान्यता है कि इस तिथि पर गंगा स्नान से पापों से मुक्ति मिलती है और काया भी निरोगी रहती है। सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मत्स्य अवतार के रूप में लिया था। अखण्ड दीप दान करने से दिव्य कान्ति की प्राप्ति होती है साथ ही जातक को धन, यश, कीर्ति में भी लाभ होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान करना दस यज्ञों के समान फलदायक होता है। कार्तिक पूर्णिमा देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृत्तियों का नाश होता है।
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दैत्य के अंत से मिली थी मुक्ति
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे। उसने स्वर्ग लोक पर भी अधिकार जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिया, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया था।
कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि मिथिला पंचाग के मुताबिक 12 नवंबर दिन मंगलवार को पूर्णिमा रात्रि 7.13 बजे तक है। वहीं बनारसी पंचांग के अनुसार प्रात: 07:02 बजे तक है तथा अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 :12 बजे से 11 :55 बजे तक है। वहीं गुली काल मुहूर्त दोपहर 11 :33 बजे से 12 :55 बजे तक है। उदया तिथि के मान से पूरे दिन पूर्णिमा तिथि का मान रहेगा और पुरे दिन गंगा स्नान और विष्णु पूजन होंगे।
दैत्य के अंत से मिली थी मुक्ति
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे। उसने स्वर्ग लोक पर भी अधिकार जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिया, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया था।