लखनऊ,
‘‘कठपुतलियों का प्रचलन पहले उत्तर प्रदेश में हुआ। धीरे-धीरे इस कला का प्रसार दक्षिण भारत से देश के अन्य भागों में हुआ। इसका उपयोग प्राचीन काल के राजा महाराजाओं की कथा , धार्मिक व पौराणिक आख्यानों और राजनीतिक व्यंग्यों को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता था। इस लुप्तप्राय कला के संरक्षण के लिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं को आगे आना होगा।’’
ये बातें पुतल विशेषज्ञ मेराज आलम ने कहीं। गुरुवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘लोक विमर्ष’ के पहले दिन राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में ‘कठपुतली: अतीत, वर्तमान और सम्भावनायें’ विषय पर हुई परिचर्चा में उन्होंने कहा कि प्राथमिक विद्यालयों में कहानी सुनाते समय कठपुतली का प्रयोग बच्चों के लिए सुरुचिपूर्ण व बोधगम्य हो सकता है। सामान्य रुप से कक्षा में किताब से बच्चों को पढ़ाने पर वे 25 प्रतिशत ही समझ पाते हैं जबकि उसे जीवन्त रुप देकर पढ़ाया जाय तो वह उसे शत प्रतिशत याद हो सकता है। बदायूं के विद्यालय में एक शिक्षिका ने यह प्रयोग किया तो उसके आश्चर्यजनक परिणाम निकले।
वरिष्ठ कठपुतली संचालक कलाकार प्रदीप नाथ त्रिपाठी ने कहा कि कठपुतली एक लोक कला है और इसे बचाने की आवश्यकता है। लोक जागरण के लिए कठपुतली का उपयोग अधिकाधिक किया जाना चाहिए। सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परिचर्चा में कठपुतली कलाकार मनमोहन लाल, श्रुति गुप्ता आदि ने भी अपने विचार साझा किये। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय कथक संस्थान की सचिव सरिता श्रीवास्तव, जीतेश श्रीवास्तव, मुनालश्री विक्रम बिष्ट, लोक गायिका ऋचा जोशी आदि अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। जनजाति लोक कला एवं संस्कृति संस्थान तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लखनऊ स्थित रीजनल आऊटरीज ब्यूरो के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन की प्रसिद्ध उद्घोषिका ऐश्वर्या ने किया। कार्यक्रम के अन्त में जादूगर सुरेश ने जादू कला का प्रदर्शन किया।
पुतलियों ने सजीव की कथायें:
प्रसिद्ध कठपुतली संचालक व हरिओम पपेट एण्ड मिरेकल ग्रुप के दलनेता मनमोहन लाल ने कठपुतली का खेल दिखाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया भोजपुरी निर्गुन गीत ‘पागल कहेला ना’ पर कठपुतलियों के नृत्य से सभागार में उपस्थित लोगों ने खूब तालियां बजायीं। उन्होंने कठपुतली द्वारा नाट्य संवादों के माध्यम से भारत सरकार की स्वच्छ भारत योजना पर आधारित जागरुकता सन्देश भी दिया। संचालक दल में सहयोगी कलाकार के रुप में सर्वश्री राकेश सैनी, राकेश श्रीवास्तव, अर्जुन गुप्ता सम्मिलित रहे।
छपेगा कठपुतली सम्बन्धी शोधपरक साहित्य :
लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि कठपुतली पर शोधपरक साहित्य के प्रकाषन, राज्य के कठपुतली कलाकारों की डायरेक्ट्री और कठपुतली कलाकारों का एक सम्मेलन आयोजित करने की आवश्यकता है जिसके लिए संस्थान की ओर से जरुरी कदम उठाये जायेंगे।
लोक विमर्श में आज:
लोक विमर्श के दूसरे दिन शुक्रवार को शाम 6 बजे ‘आल्हा गायन: अतीत, वर्तमान और सम्भावनायें’ विषय पर परिचर्चा तथा आल्हा दल की प्रस्तुति होगी। अन्त में जादू भी दिखाया जायेगा। तीसरे दिन शनिवार को लोक नृत्य पर चर्चा, नृत्य प्रस्तुतियां व जादू प्रदर्शन होंगे।
कार्यक्रम में मुख्य रुप से वरिष्ठ साहित्यकार डा. विद्याविन्दु सिंह, डा. रामबहादुर मिश्र, एसएनए के पूर्व सभापति अच्छेलाल सोनी, ज्योति किरन रतन, कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा. संजीव गौतम, मंजू श्रीवास्तव, मंजू चक्रवर्ती, सर्वेश माथुर, अनूप मिश्र, सोनल ठाकुर, संस्थान के विशेष कार्याधिकारी होमेन्द्र कुमार मिश्र, जनसम्पर्क अधिकारी सुरेष कुमार, तेजस्वी गोस्वामी, सरदार कंवलजीत सिंह, दबीर सिद्दीकी, शत्रुघ्न सिंह, अरुण पाण्डेय, सन्तोष शुक्ला आदि मौजूद रहे।