बैसाखी खालसा पंथ का साजना के रूप में 13 अप्रैल 1699 की बैसाखी खालसा पंथ की दशम गुरू गोविन्द सिंह जी ने आनन्दपुर (पंजाब) की पवित्र भुमि पर एक परम अलौकिक एवम अदभुद ढंग से भाग्यशाली सिक्खो के शीश भेंट करने के उपरान्त दिल देकर दिल जितने वाले कलगीधर पातशाह जी श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने अमृत दान किया था तथा उन्हे पाॅंच प्यारे कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
खालसा पंथ की स्थापना एक अलौलिंक एव विलक्षण घटना है। जिसमें कायरता , निराशा ,अलौलिकता ,विरोधाभास , पाखण्डं , जन्म आधारित जाति वर्ग आदि को समाप्त करर्के निजीव एव बुजदिल कौमने नई प्राण शाक्ति देकर अकाल पुरख (परमात्मा) का असली रूप प्रदान किया जिसकी कल्पना प्रथम गुरू जी गुरूनानक देव जी ने 1469 में की थी । सभी प्रकार के कर्मकाण्ड आडम्बर मूर्ति पूजा से हटाकर आत्मलिंग वाहिगुरू (प्रभु) के शब्द गुरू के साथ जोडा।
समाज को निर्मल निरापद ऊर्जावाद एकता उत्साह और सदकर्म का एक परम अलौकिक अध्यात्मक अनूठा सदमार्ग दिया । गुरूओं ने ईर्ष्या अहम् अंधविश्वासों कर्मकाण्डों धार्मिक कट्टरता जाति गरिबी तथा राजनैतिक अत्याचारों से पीड़ित बिलखते समाज को गुरूबाणी द्वारा सुख शान्ति तथा प्रभु चिन्तन का सन्देश दिया । देश की आज़ादी में गाय गरीब तथा ब्राहमण (तिलक व जनेऊ) की रक्षा के लिए अपने पिता नौवे गुरू श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी स्वमं कुर्बान हाने के लिए दिल्ली दरबार की ओर प्रसथान किया था अपना शीश बलिदान दिया।
गुरू जी के दुलारों नेे अपने अमूल्य जीवन की आहुतियां दी ताकि बेबस तथा निर्राह लोग अपने पैरों पर खड़े हो सके। बैसाखी का पवित्र पर्व खलसा पंथ के साजना दिवस में प्रत्येक भारतीय को यह संदेश देता है कि हम गुरू साहिबान के उपदेशों को अपने जीवन में सगृति करें तथा खडे बाटे का अमृत पान करके देश एवं कौम की सेवा के लिए तत्पर रहे । यह हमारी “वाहिगुरू” (परमात्मा) सनमुख सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है ।
“वाहिगुरू जी का खलसा वाहिगुरू जी की फतेह”
सुरजीत सिंह राजपाल
केन्द्रीय सिंह सभा लखनऊ
गुरूद्वारा आलमबाग
9839016828
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