अब तक लाइलाज साबित हो रहे कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए पोलियो वायरस को खत्म करने वाली वैक्सीन का उपयोग करने की तैयारी चल रही है। हालांकि भले ही वैश्विक स्तर पर शोधकर्ताओं ने पोलियो की ऑरल वैक्सीन के उपयोग की सलाह दी है, लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने इस सलाह पर बेहद सतर्क रुख दिखाया है। उन्होंने यह बात माना है कि इस वैक्सीन का कोरोना वायरस (कोविड-19) के इलाज में इस्तेमाल के लिए परीक्षण तो करना चाहिए, लेकिन उन्होंने यह भी संभावना जताई कि इससे संभवत: संक्रमण के खिलाफ सीमित सुरक्षा ही हासिल होगी।दरअसल खासतौर पर कोविड-19 के लिए कोई भी वैक्सीन तैयार करने में कम से कम एक साल का वक्त लगने की बात कही जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वायरस के खिलाफ तत्काल राहत के लिए सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन पहले से मौजूद हैं। इन वैक्सीन में ऑरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) और टीबीरोधी बैक्यिूलस कैलमैट्टेगुरिन (बीसीजी) भी शामिल हैं। ये दोनों वैक्सीन पहले से ही भारतीय बच्चों के लिए प्रतिरक्षक अभियान का हिस्सा हैं। जम्मू के सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसिन (सीएसआईआर-आईआईआईएम) के निदेशक राम विश्वकर्मा ने कहा, ओपीवी का एक चिकित्सकीय परीक्षण संचालित करने लायक है। विश्वकर्मा पिछले सप्ताह एक साइंस जर्नल में प्रकाशित हुए एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल के अध्ययन को लेकर कहा, अगर ओपीवी लोगों को सार्स-कोव-2 वायरस से सुरक्षित रख सकती है तो इसका परीक्षण होना चाहिए। बता दें कि इस अंतरराष्ट्रीय शोध दल में अमेरिका के दो मशहूर वैज्ञानिक श्यामसुंदरम कोट्टली और रॉबर्ट गैलो भी शामिल थे। अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले वायरलॉजिस्ट गैलो एड्स फैलाने वाले एचआईवी वायरस की खोज में सहयोगी रहे हैं।
उन्होंने गौर किया कि पोलियामायलिटिस संक्रमण को रोकने के लिए उपयोग की जाने वाली वैक्सीन का प्रयोग 1950 से हो रहा है और कई अन्य वायरल संक्रमण में भी इसे प्रतिरक्षक पाया जा चुका है। लेकिन उन्होंने साथ ही कहा, सामान्य तौर पर जन्मजात प्रतिरक्षा को वैक्सीन लगवाकर बढ़ाया जा सकता है और ओपीवी इस हिसाब से कोरोना संक्रमण के खिलाफ अस्थायी सुरक्षा दे सकती है। विश्वकर्मा के मुताबिक, गैलो की तरफ से प्रस्तावित विचार एक मजबूत वैज्ञानिक परिकल्पना पर आधारित है। लेकिन हम नहीं जानते कि अंत में क्या होने वाला है, क्योंकि इसके (कोरोना संक्रमण के) कई चरण हैं। पोलियो वैक्सीन शुरुआती चरण में हल्के लक्षणों के दौरान मरीजों की मदद कर सकती है, लेकिन शायद यह गंभीर मरीजों पर प्रभावी साबित न हो।
एक अन्य इम्युनोलॉजिस्ट सत्यजीत रथ ने कहा, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि गैलो और उनकी टीम ओपीवी के एक वैक्सीन के तौर पर काम करने की बात नहीं कर रहे हैं, जिससे खास प्रतिरक्षक प्रतिक्रिया मिलती है। इसके बजाय वे लोगों को एक वायरल संक्रमण देने की बात कर रहे हैं, कोई भी वायरल संक्रमण, जो शरीर की जन्मजात एंटीवायरल और दाहक प्रतिरक्षा को सक्रिय कर देगी। इससे किसी अन्य वायरस (सार्स-कोव-2 या कोई अन्य) के उस दौरान शरीर में प्रवेश करने के मौके कम हो जाएंगे। दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी (एनआईआई) के वैज्ञानिक सत्यजीत रथ ने आगे कहा, यह तरीका शायद काम कर सकता है। कुछ हद तक यह मेरा अनुमान है और यह इसे खासतौर पर उपयोगी बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। पहले से उपलब्ध वैक्सीन का प्रयोग एक अच्छा विचार है। इसमें कुछ हद तक सुरक्षा मिलने की गुंजाइश है। लेकिन ऐसा तभी होगा, जब दो पैथोजन के प्रोटीन समान अनुक्रम के होंगे।
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