गरीबी से तंग लोकेश को मिला ‘कृष्ण’ जैसा दोस्त तो बने DSP, दिल छूने वाली एमपी की यह कहानी

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कोई संघर्ष में बिखर जाता है, तो कोई निखर जाता है। लेकिन लोकेश छापरे संघर्ष के दम पर पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) बनने में कामयाब हुए हैं। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) 2019 की परीक्षा परिणाम हाल में आए हैं, जिसमें उनका चयन इस पद के लिए हुआ है। हरदा जिले के खरदना गांव के निवासी लोकेश छापरे की कहानी समाज के लिए प्रेरणादायी है। वे एक गरीब नाविक के बेटे हैं, जिनके पिता राम सिंह नाव चला कर परिवार का गुजर बसर करते हैं। इस काम में लोकेश के दो बड़े भाई भी उनकी मदद करते हैं।लोकेश ने बात करते हुए बताया कि परिवार की गरीबी की वजह से वह आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं उठा पा रहे थे। इस बीच उनके दोस्त शुमभ ने काफी मदद की, जिनके कारण हमें सफलता मिली है और इस मुकाम तक पहुंच पाए हैं। हम सफलता के मुकाम पर पहुंच पाए।

मां ने बेचे फल

वहीं, लोकेश ने बताया कि उनका गांव खरदना, हरदा जिले में नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर बांध के बेक वाटर के किनारे है। पिता गांव में ही नाव चलाने का काम करते हैं। इससे ही उनकी आजीविका चलती है। लोकेश की मां का जीवन भी काफी संघर्षों से भरा रहा है। बच्चों के लिए मां ने खेतों से लेकर फल-सब्जी बेचने तक का काम किया।

गांव में की शुरुआती पढ़ाई

इसके साथ ही लोकेश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव में की है। माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्हें नदी के दूसरे किनारे पर बसे बिछोला गांव में जाना पड़ता था। जहां वह कभी नाव से तो कभी अजनाल नदी से तैरकर जाते थे। 8वीं पास कर हरदा के उत्कृष्ट विद्यालय में उन्होंने प्रवेश लिया और सरकारी हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की।

दोस्त ने निभाई कृष्ण की भूमिका

‘सुदामा’ लोकेश के लिए उनके दोस्त शुभम ‘कृष्ण’ बनकर जीवन में आए। लोकेश बताते हैं कि ‘कक्षा 10 वीं में मेरी दोस्ती शुभम गौर से हुई। गणित विज्ञान विषय से 12 वीं पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इंदौर जाकर आर्ट्स कॉमर्स कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन मेरे पास खर्च उठाने के लिए पैसे नहीं थे। भंवरकुआं क्षेत्र में किराए से रहता था।

लोकेश ने कहा कि साल 2017-18 में इंदौर में भारत-ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच था। एक दोस्त ने कहा कि अगर वो उन्हें मैच के टिकट लाकर देंगे तो प्रति टिकट 400 रुपए देंगे। पैसों की जरूरत से जूझ रहे लोकेश भंवरकुआं से पैदल होल्कर स्टेडियम पहुंच गए। रात एक बजे से अगले दिन 4 बजे तक लाइन में लगे रहे, पर टिकट नहीं मिले। उन्हें पुलिस की लाठी भी खानी पड़ी। उसके बाद लोकेश काफी हताश निराश हो गए लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। इसके बाद उन्होंने कॉम्पिटिशन मैगजीन में पार्ट टाइम जॉब किया।

गुजारा करना हो रहा था मुश्किल

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लेकिन गुजारा चलाना मुश्किल हो रहा था। लोकेश के दोस्त शुभम ने कहा कि भोपाल आ जाओ। फिर लोकेश ने शुभम के किराए के मकान में रहकर पीएससी की पढ़ाई की और 2019 में पीएससी दिया। अब उसका परिणाम सबके सामने है। वे डीएसपी बने हैं लेकिन लोकेश कहते हैं कि मैं भी रुका नहीं हूं। मेरे दो एग्जाम हैं, मुझे उम्मीद है कि एमपीपीएससी का सर्वोच्च पद डेप्युटी कलेक्टर में हासिल करके रहूंगा।

लोकेश ने बताया कि अब 4 दिनों बाद फिर उनका PSC एग्जाम है। दोस्त शुभम भी पीएससी की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि शुभम अभी शहर से बाहर हैं।

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