प्रदेश की बिजली कंपनियां अब उन उत्पादन इकाइयों की महंगी बिजली सरेंडर कर सकेंगी जिनके साथ विद्युत क्रय अनुबंध (पीपीए) की 25 वर्ष की अवधि पूरी हो गई है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की नई गाइडलाइन से 25 वर्ष से ऊपर के पीपीए वाले उत्पादन गृहों से महंगी बिजली खरीदने की बाध्यता खत्म हो गई है। नई गाइडलाइन जारी होने के बाद राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने राज्य सरकार से 1600 मेगावाट महंगी बिजली सरेंडर करने की मांग की है। इसमें 800 मेगावाट बिजली एनटीपीसी व 800 मेगावाट निजी उत्पादन गृहों की है। ऊर्जा मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी नई गाइड लाइन में प्रावधान है कि कोई भी राज्य अपने अधीन किसी भी उत्पादन इकाई से 25 वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद पीपीए से बाहर हो सकता है। यानी अगर राज्य को यह लगता है कि पीपीए के अनुसार उसे मंहगी बिजली खरीदनी पड़ रही है तो वह उसे छोड़ सकता है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि तमाम राज्य उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने के लिए महंगी बिजली खरीदने से बचने की कोशिश कर रहे हैं। उड़ीसा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मेघालय, मध्य प्रदेश, दिल्ली, त्रिपुरा व सिक्किम समेत कई राज्यों ने महंगी बिजली सरेंडर करने का प्रस्ताव ऊर्जा मंत्रालय को दिया है। कुछ राज्यों ने बिजली सरेंडर कर भी दी है, लेकिन यूपी ने अभी तक महंगी बिजली सरेंडर नहीं की है। परिषद का कहना है कि पावर कॉर्पोरेशन एनटीपीसी और निजी घरानों की 800-800 मेगावाट बिजली सरेंडर करके इसके एवज में एनर्जी एक्सचेंज व अन्य स्रोतों से सस्ती बिजली खरीद सकता है। वर्मा ने कहा कि परिषद जल्द ही अपनी अध्ययन रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा।
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