लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गुरुवार को कहा कि यह दुःख और क्षोभ की बात है कि भाजपा-संघ नेतृत्व अपने राजनीतिक स्वार्थ साधन के लिए देश के महापुरूषों का इस्तेमाल करने में भी संकोच नहीं कर रहा है। जाति-धर्म से ऊपर उठकर अंधविश्वासों पर गहरी चोट करने वाले संत कबीर के माध्यम से देशभर में फैले उनके करोड़ो अनुयायियों को अपना वोट बैंक बनाने और इसी बहाने बुनकरों तथा अति पिछड़ों का समर्थन जुटाने का भोंडा प्रयास उनके 500वें निर्वाण दिवस पर मगहर में किया गया है।
भाजपा की संपूर्ण राजनीति और नीति-कार्यक्रम सब सत्ता के इर्द-गिर्द घूमते हैं। सन् 2019 में केन्द्र में अपनी सत्ता की वापसी के लिए भाजपा-संघ कुछ भी करने को तैयार हैं। इसमें वे उचित-अनुचित, सही-गलत का कोई भेद नहीं करते हैं। समाज को तोड़कर जाति-धर्म का उन्माद पैदा कर और जनजीवन में आतंक फैलाकर भी सत्ता पाने में भाजपा -संघ को गुरेज नहीं है।
संत कबीर दास ने अपने समय की तमाम कुरीतियों पर चोट की थी। उन्होंने धर्म के नाम पर, मंदिर-मस्जिद के नाम पर, समाज में विभेद पैदा करने वाली ताकतों पर कड़ा प्रहार किया था। वे स्पष्ट कहते थे ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंड़ित होय‘। हिन्दू-तुर्क उनके लिए एक समान थे। उनका दर्शन सामाजिक सद्भाव-सौहार्द और सबको गले लगाने का है। समाजवादी पार्टी परस्पर सहयोग, बिना जाति-धर्म के भेदभाव के सबको सम्मान एवं अधिकार देने का काम करती है और राजनीति को सेवा का माध्यम मानती है। भाजपा को इन सबसे चिढ़ है और वह नफरत तथा सांप्रदायिकता का जहरीला व्यापार करती है। कितने अफसोस की बात है कि संत कबीर के निर्वाण दिवस और 620वें प्राकट्य दिवस पर प्रधानमंत्री जी कबीर दास को श्रद्धांजलि देने के नाम पर विपक्ष मूलतः समाजवादी दल पर निशाना साधते रहे।
भाजपा जानती है सपा, बसपा की एकता उन्हें इस बार केन्द्र में बैठने नहीं देगी। भले ही वे अपने मुंह मियां मिटठू बने रहें। वे मगहर कबीर दास जी के लिए नहीं, उनके बहाने अपने चुनाव के लिए वोट बटोरने गए हैं। अच्छा होता वे कबीरदास जी के दर्शन से प्रेरणा लेते, अपनी आत्मशुद्धि करते और नफरत की राजनीति से तौबा करते। कबीर को पढ़ लेते तो भेदभाव का रास्ता नहीं अपनाते। तब देश में असहिष्णुता और समाज के एक बड़े वर्ग में दहशत नहीं होती। समाजवादी पार्टी कानून का राज चाहती है और न्यायालय का सम्मान करती है। भाजपा को लोकतंत्र से परहेज है और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की आदत है।