दुनियाभर में कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर और हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर हो रहा है। हालांकि इन दोनों दवाओं के प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक कभी एकमत नहीं हुए। अब नॉर्वे के ओस्लो यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रेमडेसिविर और एचसीक्यू मरीजों को स्वस्थ होने में न तो कोई मदद करती है, न ही बीमारी की गंभीरता कम करती है और न ही सूजन की तकलीफ में राहत मिलती है। इसमें मरीज की उम्र और रोगी को कितने समय तक लक्षण रहा इससे कोई लेना देना नहीं होता है।
भर्ती 181 मरीजों पर किया शोध
नॉर्वे के वैज्ञानिकों ने 28 मार्च 2020 से चार अक्तूबर 2020 के बीच 23 अस्पतालों में 181 मरीजों पर शोध के बाद ये दावा किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार 42 मरीजों को रेमडेसिविर दी गई, 52 मरीजों को एचसीक्यू जबकि 87 मरीजों को कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाली सामान्य दवाएं दी गईं। वैज्ञानिकों ने पाया कि परीक्षण में शामिल मरीजों के तीनों समूह में पहले सप्ताह बराबर स्तर पर वायरल लोड कम हो रहा था।
दवा से कोई राहत का संकेत नहीं
वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन मरीजों को रेमडेसिविर और एचसीक्यू दी जा रही थी उनके ब्लड सैंपल से पता चला है कि किसी भी दवा से रेस्पिरेटरी फेल्योर या सूजन कम होने का कोई संकेत नहीं मिला है। यही नहीं इन मरीजों में एंटीबॉडीज भी बनती नहीं दिखी हैं। वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में ये स्पष्ट किया है कि रेमडेसिविर या एचसीक्यू की मदद से गले में मौजूद वायरस को खत्म नहीं किया जा सकता है।