प्रदेश में वर्षा चक्र की तस्वीर बदल रही है। इसकी मुख्य वजह क्लाइमेट चेंज को माना जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के वर्षा आंकड़ों और ‘असेसमेंट आफ क्लाइमेट चेंज ओवर इंडियन रीजन’ की रिपोर्ट पर नजर डालें तो 1991 से 2015 के मध्य भारतीय क्षेत्र में जहां सामान्य वर्षा के मुकाबले छह फीसद की गिरावट दर्ज हुई। वहीं, उत्तर प्रदेश में इस अवधि में यह 15 से 20 प्रतिशत रिकार्ड की गई है। यह गिरावट लगातार वर्ष 2020 तक दर्ज की गई है। प्रदेश के पश्चिमी, मध्य, पूर्वी क्षेत्रों और बुंदेलखंड में वर्षा के पैटर्न में काफी विविधता पाई गई। दो तिहाई जिले हर साल बारिश की कमी से प्रभावित रहते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि विगत तीन दशकों के दौरान बारिश के बदलते रुख को देखते हुए वर्षा आधारित योजनाओं में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य की चुनौतियां का सामना किया जा सके।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के विगत चार वर्षों (2017-18 से 2020-21) के दरम्यान प्रदेश में जून से सितंबर तक होने वाली मानसूनी बारिश में सामान्य वर्षा की तुलना में औसतन 10 से 30 प्रतिशत तक की कमी रही है। बारिश के आंकड़ों की गणना के लिए वर्षा का वर्ष जून से मई तक माना गया है। इस दौरान प्रदेश के लिए औसत सामान्य वर्षा का स्तर 947.4 मिमी आंका गया है। इसमें से जून से सितंबर के मध्य मानसूनी बारिश का आंकड़ा 829.8 मिमी है।
वहीं, सूबे में मार्च से मई की प्री मानसून अवधि में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा सूबे में सामान्य वर्षा का स्तर अपेक्षाकृत सबसे कम 32.6 मिमी आका गया है। चक्रवाती तूफानों और पश्चिमी विक्षोभ के चलते बीते दो वर्ष में तो इस दरम्यान नौ गुना अधिक 275 से 289 मिमी की भारी बारिश रिकार्ड हुई है, जो वर्षा चक्र में हो रहे बदलाव को दर्शाता है। बीते वर्षों में पोस्ट मानसून अवधि अक्टूबर से दिसंबर के मध्य भी सामान्य वर्षा 47.5 मिमी. के मुकाबले सामान्य वर्षा में गिरावट ही दर्ज की जा रही है।
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