राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट पर संतों में अलग-अलग राय

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उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता भी साफ हो गया है, लेकिन साधु संत समाज को सरकार के ट्रस्ट निर्माण से लेकर काफी-कुछ अखर रहा है। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल ने कहा कि नया ट्रस्ट बनाने की जरूरत नहीं। रामजन्मभूमि न्यास पहले से ही मौजूद है और इसमें कुछ नये सदस्यों को शामिल करके मंदिर निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जा सकता है।
ट्रस्ट बनाने को लेकर शुरू हुई रार
वहीं दिगंबर अखाड़ा ने महंत नृत्य गोपाल दास के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। अखाड़ा के महंत सुरेश दास ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने आदेश में नया ट्रस्ट बनाने का उल्लेख किया है। इसलिए सरकार नया ट्रस्ट बनाए और इसमें रामजन्मभूमि न्यास के लोगों का प्रतिनिधित्व भर हो। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी अपनी आवाज तेज की है। स्वामी का कहना है कि रामालय ट्रस्ट को राम मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी दी जाए। रामालय ट्रस्ट का गठन पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के समय में हुआ था।
निर्मोही आखाड़ा भी पसोपेश में है। जानकी घाट के महंत की भी अपनी मांग है। महंत का कहना है कि रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास को भी ट्रस्ट में स्थान मिलना चाहिए। राम जन्मभूमि न्यास का गठन विहिप की पहल पर हुआ है तो रामालय ट्रस्ट शंकराचार्य जगदगुरू स्वामी स्वरुपानंद की अगुवाई में हुआ है।
विहिप ने की नया ट्रस्ट बनाने की वकालत
इसी तरह से कई और साधु संत सामने आ रहे हैं। साधु संतों के एक वर्ग का कहना है कि राम मंदिर निर्माण की लड़ाई उन्होंने शुरू की और पूरा श्रेय विहिप का रामजन्मभूमि न्यास लेने में जुट गया है। वहीं विहिप के नेताओं का कहना है कि नया ट्रस्ट बनना चाहिए। इस ट्रस्ट में गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी सदस्य के तौर पर शामिल होना चाहिए।

माना जा रहा है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार राम मंदिर निर्माण के लिए बनने वले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा, दिगंबर अखाड़ा, रामजन्मभूमि न्यास, विश्व हिन्दू परिषद समेत अन्य को स्थान मिल सकता है।
सरकार ने शुरू की तैयारी
नौ नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद केंद्र सरकार का कानून मंत्रालय अदालत के फैसले का अध्ययन कर रहा है। समझा जा रहा है कि जल्द ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हो सकती है। इस बैठक में राम मंदिर निर्माण के जरूरी कानूनी प्रावधान पर विचार किया जा सकता है। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इससे संबंधित कानूनी प्रावधान पर संसद की मंजूरी भी लेगी।

उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार तीन के महीने के भीतर गठित होने वाले मंदिर निर्माण के लिए जरूरी ट्रस्ट पर भी निर्णय लिया जाना है। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार का प्रयास उ.प्र. सरकार के साथ मिलकर साधु-संतो में समन्वय बनाकर मंदिर निर्माण कार्य को निष्कंटक प्रशस्त करना है। समझा जा रहा है कि सुरक्षा संबंधी चिंताओं को देखते हुए केन्द्र सरकार केन्द्रीय गृहमंत्रालय को इसकी नोडल एजेंसी बना सकती है। केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय की भूमिका भी बढ़ सकती है। फिलहाल अभी सबकुछ विचार के स्तर पर है।
शुरू हो चुका है सफलता क्लास

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