अवैध खनन रोकने के लिए सरकार के पास पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। जब स्टाफ का टोटा है तो अवैध खनन कैसे रोका जाएगा। साइटों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना भी बनाई गई थी परंतु यह भी ठंडी पड़ गई है। जिन साइटों पर ड्रोन की मदद ली जानी थी, लेकिन यह भी महंगा सौदा है। ऐसा में सरकार के लिए चुनौती है कि कैसे अवैध खनन रोका जा सके।
राज्य में अवैध खनन से जहां सरकार को आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है, वहीं पर्यावरण पर असर पड़ रहा है और नदियों-खड्डों जलस्तर नीचे चला गया है। राज्य सरकार ने अवैध खनन से हो रहे नुकसान को रोकने के लिए कई साइटों की नीलामी कर दी है। इसके बाद भी प्रदेश के कई इलाकों में नदियों और खड्डों के किनारे अवैध खनन जोरों पर है।
फील्ड में काम करें या दफ्तर का काम निपटाएं
अवैध खनन रोकने के लिए विभाग में फील्ड स्टाफ की कमी है। अधिकांश जिलों में फील्ड स्टाफ से दफ्तरों में काम लिया जा रहा है। यह स्टाफ दफ्तरों में फाइलों को निपटाए या फिर फील्ड में अवैध खनन पर निगरानी रखे। दोनों काम एक साथ संभव नहीं हैं।
साइटों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना ठंडी पड़ी
प्रदेश के विभिन्न जिलों में अवैध खनन पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए सरकार ने निर्देश भी दिए थे। लेकिन कैमरे तोड़ने और चोरी होने की घटनाएं सामने आई थी। इसके बाद से साइटों पर कैमरे लगाने की योजना ठंडी पड़ गई।
ड्रोन से अवैध खनन पर निगरानी महंगा सौदा
सरकार ने अवैध खनन रोकने के लिए साइटों पर नजर रखने के लिए ड्रोन से निगरानी रखने का प्रयोग भी किया। यह प्रयोग काफी महंगा साबित हुआ है, क्योंकि ड्रोन का बैटरी बैकअप अधिकतम 6 घंटे तक रहता है और यह ज्यादा दूर तक नजर नहीं रख सकता। विभाग के अधिकारी कहते हैं कि सीसीटीवी और ड्रोन से साइटों पर अवैध खनन पर नजर रखना संभव नहीं है।