कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के मंत्री दयाशंकर जी ने लखनऊ में आयोजित परामर्श कार्यक्रम की अध्यक्षता की, जिसमें असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिए काम करने वाले 70 से अधिक हितधारकों और प्रमुख नेटवर्क ने भाग लिया।
लखनऊः एक तरफ, भारत की 97% महिलाएँ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत हैं। वहीं दूसरी तरफ, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, हमारी 15% आबादी छह साल से कम उम्र की है। यह माताओं और उनके बच्चों दोनों के लिए उनकी विकास आवश्यकताओं हेतु एक चुनौती है। बच्चों के लिए आज यह जरूरत है कि हम एक राष्ट्र के रूप में उनके शुरूआती बचपन के विकास पर पूरा ध्यान दें। बच्चों के फलने-फूलने और वृद्धि के लिए उनका लालन-पालन और देखभाल करने की आवश्यकता होती है, फिर भी क्रेच और डेकेयर में बच्चों की इस प्रकार की देखभाल दुर्लभ होती है।
इन मुद्दों को संबोधित करने और बच्चों की पूर्णकालिक गुणवत्तापूर्ण देखभाल की माँग को पूरा करने के लिए, यूपी फोर्सेज नेटवर्क और सेव द चिल्ड्रन द्वारा एक राज्य स्तरीय परामर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस परामर्श कार्यक्रम का उद्देश्य एक साथ सामूहिक कार्यवाही करनी है, क्योंकि कई गैर सरकारी संगठनों और श्रमिक संगठनों के साथ पूरे देश में आयोजित किए गए कई परामर्श कार्यक्रमों में प्रमुख संदेशों और मांगों को पहले ही साझा किया जा चुका है, चर्चा की जा चुकी है और उन्हें स्वीकार भी किया जा चुका है।
उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर जी ने इस राज्य स्तरीय परामर्श कार्यक्रम की अध्यक्षता की जिसमें पूरे राज्य के 70 से अधिक हितधारकों ने भाग लिया जो महिलाओं के साथ जमीनी स्तर पर उनके बच्चों की सलामती के लिए कार्यरत हैं। इस परामर्श कार्यक्रम के चर्चा सत्र में शामिल होने वाले प्रतिभागियों में भारत के अग्रणी एनजीओ भी शामिल थे।
सेव द चिल्ड्रन द्वारा संचालित, इस परामर्श कार्यक्रम में पूरे दिन गुणवत्तापूर्ण देखभाल किए जाने के प्रावधान की आवश्यकता हेतु उपस्थित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित किया गया। एक प्रमुख बाल अधिकार संगठन ने इस कार्यक्रम में उपस्थित हितधारकों से राज्य सरकार, संघों, सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों, समुदाय-आधारित संगठनों और गैर सरकारी संगठनों जैसे सभी हितधारकों के साथ इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए एक सुविचारित मार्ग पर काम करने का आग्रह किया।
उत्तर प्रदेश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले नेटवर्क और समूहों की महिला प्रतिनिधियों ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि, महिला कर्मचारियों की कमाई कम और अनियमित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कम आमदनी का मतलब है कि कर्मचारियों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक काम करना जरूरी है और उनके पास अपने बच्चों की देखभाल के लिए समय या आवश्यक संसाधन नहीं हैं।
मराई चटर्जी, निदेशक, सेवा सोशल सिक्योरिटी ने कहा, “महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए पूरे दिन गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल करना बहुत जरूरी है। यह हमारे बच्चों, महिलाओं और हमारे परिवार के लिए अच्छा है। नीति निर्माताओं और हमारे लीडरों के साथ किए गए परामर्श की इस पहली कड़ी में महिला कर्मचारियों की भागीदारी और हमारे बच्चों के स्वस्थ भविष्य को सक्षम बनाने के लिए बाल देखभाल के महत्व पर जोर दिया जाएगा।”
सेव द चिल्ड्रन इंडिया (एससी इंडिया) के एजूकेशन हेड कमल गौर ने कहा, “गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल एक सही शुरुआत है जिसमें बच्चे को एक उत्तेजक और पोषणयुक्त वातावरण प्रदान किया जाएगा जिससे वे स्कूल जाने लायक तैयार हो जाएँगे। इससे सुविधावंचित माता-पिता को सुरक्षा और संतुष्टि की भावना मिलती है कि उनके बच्चे को आवश्यक देखभाल और शिक्षा प्रदान की जा रही है।”
अच्छी गुणवत्ता, सुलभ, सार्वजनिक बाल देखभाल सेवाओं का प्रावधान प्रमुख नीतिगत कार्यक्रम है जिसमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में महिला कर्मचारियों की उत्पादकता और आय में काफी सुधार करने, उन्हें गरीबी से उभरने और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने में मदद करने की क्षमता है। जब महिलाएँ अधिक कमाती हैं, तो यह एक पुण्य चक्र स्थापित करती हैरू वे अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आवश्यकताओं हेतु धन का उपयोग करती हैं।
भारत के महापंजीयक के अनुसार, महिलाओं की कार्य भागीदारी दर 25ः है, जो दुनिया में सबसे कम है। प्रकाशित रिपोर्टों में कार्यों में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ती गिरावट दिखाती दिखाई देती है। यदि आईएलओ अनुमान कोई संकेत हैं, तो महिला कार्य बल की भागीदारी दर वर्ष 2030 तक 24 प्रतिशत तक गिर जाएगी, जो निश्चित रूप से भारत को एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) 5ः वर्ष 2030 तक लैंगिक असमानताओं को समाप्त करने से रोक देगी। रिपोर्टों में बार-बार सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल सहयोग की कमी का हवाला दिया गया है जो इस गिरावट का एक प्रमुख कारण है। परिवारों के सामाजिक और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल में बदलाव के साथ, गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन विकास सेवाओं का प्रावधान एक आवश्यकता बन गया है।
सीएसओ सहयोगियों और सरकार की साझेदारी से सेव द चिल्ड्रन उत्तर प्रदेश राज्य में पूर्णकालिक गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल के इस अति आवश्यक प्रावधान को संबोधित करने की योजना बना रहा है।
परामर्श कार्यक्रम का परिणाम
इस परामर्श कार्यक्रम ने जमीनी स्तर से राज्य स्तर तक प्रमुख संदेशों और माँगों के वितरण में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए एक मार्ग/ संचालन योजना विकसित करने में मदद की। तय किए गए प्रमुख कार्य निम्नलिखित थेः
1.पूरे दिन, संपूर्ण गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल के क्रियान्वयन को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों का एक राज्य-स्तरीय कार्य समूह बनाना। वे आईसीडीएस केंद्रों को पूर्णकालिक देखभाल केंद्र के रूप में विस्तार करने, नियमित रूप से साझा करने और समूह को वापस रिपोर्ट करने की समय सीमा और तंत्र विकसित करने जैसे विकल्पों पर विचार करेंगे।
2.उत्तर प्रदेश के लिए “गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल“ और “गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल हेतु गैर परक्राम्य“ को परिभाषित करना।
3.आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों के उचित पारिश्रमिक, क्षमता वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा के साथ देखभाल कार्य को सभ्य कार्य के रूप में पहचानना। गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल क्या है और छोटे बच्चों एवं उनके कामकाजी माता-पिता पर इसका प्रभाव क्या है, इस पर श्रमिकों और गैर सरकारी संगठनों के बीच ज्ञान और जागरूकता में वृद्धि करना।
प्रमुख माँगों को आगे ले जाने पर चर्चा
1.सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बाल देखभाल को सभी कर्मचारियों के अधिकार के रूप में पहचानना।
2.आंगनवाड़ी केंद्रों को आईसीडीएस घंटे और गतिविधियों का विस्तार करके गुणवत्तापूर्ण क्रेच और डे केयर सेंटर के रूप में कार्य करने के लिए सुसज्जित करना।
3.शिकायत निवारण प्रणालियों के साथ सभी बाल देखभाल कार्यक्रमों की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी के लिए स्थानीय स्तर पर भागीदारी, पारदर्शी और जवाबदेह तंत्र विकसित करना।
4.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में पहले से ही अनिवार्य रूप से बच्चों की संख्या की परवाह किए बिना, अनौपचारिक रोजगार में सभी महिला कर्मचारियों को मातृत्व अधिकार सुनिश्चित करना।
5.बाल देखभाल के काम को अच्छे काम के रूप में पहचानना।
6.छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए जीडीपी की कम से कम एक प्रतिशत अतिरिक्त प्रतिबद्धता।
सेव द चिल्ड्रन इंडिया के बारे में सेव द चिल्ड्रन भारत के 15 राज्यों और 120 देशों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मानवीय/ डीआरआर जरूरतों से संबंधित मुद्दों पर काम करता है, खासकर उन लोगों के लिए जो सबसे अधिक सुविधा से वंचित हैं। भारत के साथ सेव द चिल्ड्रन का जुड़ाव 80 वर्ष से अधिक पुराना है।