संविधान के प्रमुख स्तम्भ डॉ भीमराव अम्बेडकर के द्वारा उद्घोषित शब्द ‘शिक्षा शेरनी का दूध है जो भी पियेगा दहाड़ेगा’ यथार्थ में नव चेतना का अभ्युदय कराता है।
शिक्षा जीवन की तैयारी के लिए नहीं है अपितु शिक्षा ही जीवन है। देश की विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए देश के समस्त बुद्धिजीवी लोगों में डॉ भीमराव अम्बेडकर का नाम अग्रणी है। लेकिन आजकल की राजनीतिक महत्वकांक्षा ने महापुरुषों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वोटों के खातिर सभी धर्म अथवा मजहब को आपस में लड़ा दिया गया है। यद्यपि संविधान की ताकत के कारण ही आज एक गरीब व्यक्ति अपने हक के लिए लड़ सकता है लेकिन सत्तालोलुप राजनेता उसका ये हक छीनने के लिए भी आतुर हैं।
राष्ट्र के संपूर्ण कार्यों का क्रियान्वयन उस राष्ट्र के संविधान में ही निहित होता है। संविधान को किसी भी लोकतांत्रिक देश की रीड की हड्डी कहा जा सकता है। ऐसे में यदि संविधान को ख़तरा होता है तो वह पूरे लोकतांत्रिक देश के लिए ख़तरा साबित हो सकता है। आज भारत के संविधान की स्थिति एक ढ़हते हुए मकान की तरह हो गई हैं । आज संविधान को इस तरह बना दिया कि ये उपर-उपर से तो हरा भरा दिख रहा है लेकिन अंदर से खोखला होता हुआ नज़र आ रहा है। भारत के संविधान को भारतीय राजनीति अपने हिसाब से उपयोग करने में लगी हुई है, जब चाहे तब संविधान की मर्यादा को तार तार कर दिया जाता है। संविधान पंथनिरपेक्ष अथवा धर्म निरपेक्ष की बात कहता है तो भारतीय राजनीति धर्म के नाम पर ही लोगों को गुमराह करने में लग जाती है। जिन नेताओं को संविधान की प्रस्तावना की भी जानकारी नहीं है वो नेता संविधान पर बेबुनियाद आरोप लगा देते हैं। परिस्तिथियों के अनुसार बदलाव भी ज़रूरी है लेकिन संविधान की अवहेलना कहाँ तक उचित है। ये वही संविधान है जिसके दम से ‘हम भारत के लोग हैं’ उद्घोषित होता है। भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने वाला संविधान आज कुछ अल्प बुद्धिजीवियों के सम्पर्क में आकर अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। आज भी स्वतंत्र भारत में धर्म के नाम पर लोगों को राजनीति ने गुमराह करके रखा है, उन तक संविधान को पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा है। संविधान जहां सबको समानता का अधिकार देता है वही आज की व्यवस्था ने अपने विशेष वर्ग को सबसे उपर रखा हुआ है। बहुत जगह चर्चा अथवा बहस होती है कि आरक्षण देश को बर्बाद कर रहा है लेकिन यथार्थ में तो आरक्षण देश के उच्च स्तरीय पदों तक पहुंच ही नहीं पाता है, वहाँ पर तो नेपोटिज्म ( भाई-भतीजावाद) पहले से अपनी नींव मजबूत करके बैठा है। आज संविधान पर हर ओर से प्रतिघात नज़र आता है क्योंकि कुछ विशेष व्यवस्थायें अपनी अपनी व्यवस्था का प्रबंध करना चाहती हैं। विशाल संविधान के आवरण को देखे तो लगता है संविधान निर्माताओं ने कितनी सटीकता से इसका निर्माण किया है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने हक की आवाज़ उठा सकता है लेकिन आज की व्यवस्था को उस आवाज़ से परेशानियों होने लगी है क्योंकि उनकी सच्चाई आम नागरिक भी जानने लगा है जो उनके लिए कदापि उचित नहीं है। इसलिए कुछ लोगों को संविधान से परहेज़ होने लगा है, लेकिन उनको ये भी समझना चाहिए कि संविधान के द्वारा ही देश आज नए चमकते सितारों से परिचित हो पा रहा है, आम व्यक्ति की आवाज़ संविधान के द्वारा ही उठाई जाती हैं। यदि संविधान को भारत से हटा दिया जाता है तो भारत पर एक विशेष वर्ग का स्वामित्व हो जाएगा जो अंग्रेज सरकार से भी खतरनाक साबित होगा। ख़तरे के कगार पर संविधान को बचाने के लिए प्रत्येक भारतीय को एक होना पड़ेगा क्योंकि संविधान के बिना देश की कल्पना करना भी व्यर्थ है। धर्म, मजहब अथवा जाति विशेष को छोड़कर संविधान की अस्मिता बचाना प्रत्येक भारतीय का परम कर्तव्य है। देश में जब लोकतंत्र होता है तब संविधान ही वो शक्तियाँ प्रदान करवाता है जिससे आम आदमी भी अपने अधिकार अथवा हक के लिए आवाज उठा सके। लेकिन विडंबना की बात है कि कुछ केवल अपने धर्म, मजहब अथवा अपनी विचारधारा के लिए देश के रीड पर ही प्रहार करने लग जाते हैं। संविधान को किसी विशेष धर्म, भाषा, संस्कृति, मजहब अथवा संप्रदाय के लिए नहीं अपितु अपने देश के लिए बचाना होगा।
संविधान के प्रमुख स्तम्भ डॉ भीमराव अम्बेडकर के द्वारा उद्घोषित शब्द ‘शिक्षा शेरनी का दूध है जो भी पियेगा दहाड़ेगा’ यथार्थ में नव चेतना का अभ्युदय कराता है।
शिक्षा जीवन की तैयारी के लिए नहीं है अपितु शिक्षा ही जीवन है। देश की विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए देश के समस्त बुद्धिजीवी लोगों में डॉ भीमराव अम्बेडकर का नाम अग्रणी है। लेकिन आजकल की राजनीतिक महत्वकांक्षा ने महापुरुषों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वोटों के खातिर सभी धर्म अथवा मजहब को आपस में लड़ा दिया गया है। यद्यपि संविधान की ताकत के कारण ही आज एक गरीब व्यक्ति अपने हक के लिए लड़ सकता है लेकिन सत्तालोलुप राजनेता उसका ये हक छीनने के लिए भी आतुर हैं।
राष्ट्र के संपूर्ण कार्यों का क्रियान्वयन उस राष्ट्र के संविधान में ही निहित होता है। संविधान को किसी भी लोकतांत्रिक देश की रीड की हड्डी कहा जा सकता है। ऐसे में यदि संविधान को ख़तरा होता है तो वह पूरे लोकतांत्रिक देश के लिए ख़तरा साबित हो सकता है। आज भारत के संविधान की स्थिति एक ढ़हते हुए मकान की तरह हो गई हैं । आज संविधान को इस तरह बना दिया कि ये उपर-उपर से तो हरा भरा दिख रहा है लेकिन अंदर से खोखला होता हुआ नज़र आ रहा है। भारत के संविधान को भारतीय राजनीति अपने हिसाब से उपयोग करने में लगी हुई है, जब चाहे तब संविधान की मर्यादा को तार तार कर दिया जाता है। संविधान पंथनिरपेक्ष अथवा धर्म निरपेक्ष की बात कहता है तो भारतीय राजनीति धर्म के नाम पर ही लोगों को गुमराह करने में लग जाती है। जिन नेताओं को संविधान की प्रस्तावना की भी जानकारी नहीं है वो नेता संविधान पर बेबुनियाद आरोप लगा देते हैं। परिस्तिथियों के अनुसार बदलाव भी ज़रूरी है लेकिन संविधान की अवहेलना कहाँ तक उचित है। ये वही संविधान है जिसके दम से ‘हम भारत के लोग हैं’ उद्घोषित होता है। भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने वाला संविधान आज कुछ अल्प बुद्धिजीवियों के सम्पर्क में आकर अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। आज भी स्वतंत्र भारत में धर्म के नाम पर लोगों को राजनीति ने गुमराह करके रखा है, उन तक संविधान को पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा है। संविधान जहां सबको समानता का अधिकार देता है वही आज की व्यवस्था ने अपने विशेष वर्ग को सबसे उपर रखा हुआ है। बहुत जगह चर्चा अथवा बहस होती है कि आरक्षण देश को बर्बाद कर रहा है लेकिन यथार्थ में तो आरक्षण देश के उच्च स्तरीय पदों तक पहुंच ही नहीं पाता है, वहाँ पर तो नेपोटिज्म ( भाई-भतीजावाद) पहले से अपनी नींव मजबूत करके बैठा है। आज संविधान पर हर ओर से प्रतिघात नज़र आता है क्योंकि कुछ विशेष व्यवस्थायें अपनी अपनी व्यवस्था का प्रबंध करना चाहती हैं। विशाल संविधान के आवरण को देखे तो लगता है संविधान निर्माताओं ने कितनी सटीकता से इसका निर्माण किया है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने हक की आवाज़ उठा सकता है लेकिन आज की व्यवस्था को उस आवाज़ से परेशानियों होने लगी है क्योंकि उनकी सच्चाई आम नागरिक भी जानने लगा है जो उनके लिए कदापि उचित नहीं है। इसलिए कुछ लोगों को संविधान से परहेज़ होने लगा है, लेकिन उनको ये भी समझना चाहिए कि संविधान के द्वारा ही देश आज नए चमकते सितारों से परिचित हो पा रहा है, आम व्यक्ति की आवाज़ संविधान के द्वारा ही उठाई जाती हैं। यदि संविधान को भारत से हटा दिया जाता है तो भारत पर एक विशेष वर्ग का स्वामित्व हो जाएगा जो अंग्रेज सरकार से भी खतरनाक साबित होगा। ख़तरे के कगार पर संविधान को बचाने के लिए प्रत्येक भारतीय को एक होना पड़ेगा क्योंकि संविधान के बिना देश की कल्पना करना भी व्यर्थ है। धर्म, मजहब अथवा जाति विशेष को छोड़कर संविधान की अस्मिता बचाना प्रत्येक भारतीय का परम कर्तव्य है। देश में जब लोकतंत्र होता है तब संविधान ही वो शक्तियाँ प्रदान करवाता है जिससे आम आदमी भी अपने अधिकार अथवा हक के लिए आवाज उठा सके। लेकिन विडंबना की बात है कि कुछ केवल अपने धर्म, मजहब अथवा अपनी विचारधारा के लिए देश के रीड पर ही प्रहार करने लग जाते हैं। संविधान को किसी विशेष धर्म, भाषा, संस्कृति, मजहब अथवा संप्रदाय के लिए नहीं अपितु अपने देश के लिए बचाना होगा।