सिक्खों के नौंवे गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शहीदी दिवस

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सिक्खों के नौंवे गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शहीदी दिवस 12 दिसम्बर,2018 को
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इतिहास
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तारीख :- नवंबर 11, 1675.
दोपहर बाद।
स्थान :- दिल्ली का चांदनी चौंक:
लाल किले के सामने :-
मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे,
वो बिल्कुल शांत बैठे थे , प्रभु परमात्मा में लीन।
लोगो का जमघट। सब की सांसे अटकी हुई।
शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादर
जी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम
बनना होगा बिना किसी जोर
जबरदस्ती के।
गुरु जी का होंसला तोड़ने के
लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए।
तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी , भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दास
को बहुत कष्ट देकर शहीद
किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने।
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था ,
क्या वो गिनती में छोटे से धर्म से हार
जायेगा।
समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था।हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
खुद चलके आया था
औरगजेब लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के
काजी के पास,,,
उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने
का फतवा निकलता था..वो मस्जिद आज भी है..
गुरुद्वारा सीस गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास
पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था. आखिरकार
जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब
नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल
चुकी थी। और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़
था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिया। हर दिल में रोष था। कुछ समय बाद गोबिंद राय जी ने जालिम को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन किया । समाज की बुराइओं से लड़ाई ,जोकि गुरु नानक देव
जी ने शुरू की थी अब गुरु गोबिंद सिंघ जी ने
उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था।
दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।
खालसा की स्थापना तो गुरु नानक देव जी ने पहले चरण के रूप में 15 वीं शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखरी पड़ाव गुरु गोबिंद
सिंघ जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगो में आत्मविश्वास जगाया और उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद का जो कार्य उन्होंने शुरू किया था वो निर्विघ्न आज
भी जारी है।
गुरु तेग बहादर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की ,
उनका एहसान भारत वर्ष
को नही भूलना चाहिए ।
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गुरु तेग बहादर
हिंद की चादर !!
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वाहिगुरु जी का खालसा
वाहिगुरु जी की फतेह !!
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