लखनऊ, नवम्बर। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी स्थापना दिवस पर पारम्परिक गीतों का उछाह हिलोरें लेता दिखाई दिया। यहां छठ पर्व के क़रीब- छठी माई के घरवा पे… व उगहे सुरुज देव भइले भिनसरवा…. जैसे छठ गीतों के संग माड़व तो भल सुंदर…. व अम्मा सावन मां जिया अकुलाए…. जैसे त्योहार और संस्कार गीतों की गूंज उठी। अकादमी स्थापना दिवस पर संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में देवीगीत, संस्कार व त्योहार गीतों पर गत माह हुई प्रतियोगिताओं के विजेताओं के सुर गूंजे तो उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इस अवसर पर अकादमी कथक केन्द्र की विभिन्न रागों व रागों से सजी दशावतार प्रस्तुति का अलग ही आकर्षण मंच पर रहा।
इस अवसर पर प्रदेश की सम्पन्न लोकविधाओं की चर्चा करतें हुए मुख्य अतिथि के तौर पर अकादमी के उपाध्यक्ष डा.धन्नूलाल गौतम ने प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई दी और कहा कि अपनी संस्कृति और संस्कारों को सहेजना हमारा दायित्व है। अकादमी इस दिशा में प्रयत्नशील है।
इससे पहले सन् 1963 में स्थापित अकादमी की कोरोना काल के शिविरों, रिकार्डिंग व सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी देने के साथ अकादमी के सचिव तरुण राज ने अतिथियों का स्वागत किया। सचिव ने बताया कि अकादमी लोकनाट्य, लोक परम्पराओं, लोक धरोहरों और लुप्त होते लोकगीतों की अथाह सम्पदा को संजोने के प्रति प्रयत्नशील है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री द्वारा घोषित मिशन शक्ति के तहत राज्य स्तर पर देवी गीत गायन प्रतियोगिता हुई तो संस्कृति मंत्री की पहल पर संस्कार व त्योहार गीतों पर स्पर्धा आयोजित की गई। विजेताओं को शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने बताया कि संस्कार गीतों व त्योहार गीतों के संकलन को अकादमी प्रकाशित भी करेगी।
मिशन शक्ति के अंतर्गत देवीगीत गायन प्रतियोगिता में प्रथम आई महाराजगंज की श्वेता वर्मा ने प्रारम्भ देवीगीत- ललकी चुनरिया उढ़ाई द नजरा जइहैं मइया…. से की और आगे- धीरे-धीरे करिहा मालिन माई के शृंगार हो… और छठ गीत- छठी माई के घरवा पे….. सुनाया। संस्कार व त्योहार गीतों की विजेता लखनऊ की शिखा भदौरिया ने सोहर, जनेऊ, मण्डप व सावन गीतों की झड़ी लगाते हुए- बाजत अवध बधइया…, आओ सखि सब मंगल गाएं…. माड़व तो भल संुदर, नाहिं जाने… इत्यादि गीत सुनाए। विजेताओं में द्वितीय रहीं वाराणसी की नीतू तिवारी ने- उगहे सुरुज देव भइले भिनसरवा…. से आगाज़ करते हुए संस्कार व त्योहार गीतों में तेल हरदी लगी बबुनी दुल्हिन बनी…., जान मारे अंगूठी सिरकरिया नू हो बाबा गवने के बिरिया… जैसे गीतों के संग निर्गुन- दुल्हिन अंगिया, काहे न धुवाई….गाया। इन गायिकाओं के साथ ही देवीगीत गायन में द्वितीय रहीं शिकोहाबाद की देविका जौहरी, तृतीय रही कानपुर की वत्सला वाजपेई, संस्कार-त्योहार गीतों में तृतीय रही कानपुर की कविता सिंह और गीतों के संकलन के लिए प्रथम रहीं लखनऊ की उमा त्रिगुणायत व द्वितीय रही आगरा की ओमवती शर्मा को अकादमी उपाध्यक्ष डा.धन्नूलाल गौतम ने स्मृतिचिह्न, प्रमाणपत्र व राशि देकर पुरस्कृत किया।
कथक गुरु स्वर्गीय सुरेन्द्र सैकिया की कोरियोेग्राफी में ढली ‘दशावतार’ संरचना को अकादमी कथक केन्द्र की प्रशिक्षिकाओं श्रुति शर्मा व नीता जोशी ने अपने नृत्य निर्देशन में छात्राओं के संग मंच पर सजीव किया। दोनों प्रशिक्षिकाओं के साथ ही मंच पर उतरी छात्राओं में प्रियम यादव, अनंत शक्तिका सिंह, आकांक्षा मिश्रा, पाखी सिंह, विधि जोशी व मनीषा सिंह शामिल थीं। गायक कमलाकांत के संगीत निर्देशन मंे निबद्ध इस रचना में हर एक अवतार के लिए भूपाली, खमाज, मेघ, भैरवी, मालकौंस, जोगिया, भीमपलासी व बैरागी इत्यादि रागों के संग तीन ताल, एक चाल, चैताल व धमार जैसे तालों का प्रयोग बेहद खूबसूरती से किया गया था। छंद संयोजन, पढ़न्त व तबला वादन राजीव शुक्ल ने किया। बांसुरी पर दीपेन्द्र कुंवर और आॅक्टोपैड पर दीपक ने साथ निभाया। इससे पहले केन्द्र की छात्राओं तान्या, अनन्या, प्रियांशी, निधि, डिम्पल, आरती, पीहू, दीप्ति, सुमन, शिवांगी, यशिका, शगुन, अमृता व आकृति ने राग राग यमन में तीन ताल में निबद्ध विष्णु स्तुति- शांताकारम् भुगजशयनं….. प्रस्तुत की। कोविड-19 के प्रोटोकाल के तहत आमंत्रित दर्शकों के साथ ही अकादमी फेसबुक पेज पर समारोह के जीवंत प्रसारण का आनन्द अन्य लोगों ने भी लिया।