‘विश्व शांति के हम साधक हैं जंग न होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। हम जंग न होने देंगे..।’ की महान विचारों के अनुरूप अपना सारा जीवन विश्व मानवता के कल्याण के लिए समर्पित करने वाले अत्यन्त ही सरल, विनोदप्रिय एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी भारत रत्न माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी एक कुषल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अच्छे वक्ता एवं कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें उनके भाषणों, कविताओं आदि के जरिए याद कर रहा है। हमारा मानना है कि भले ही आज अटल जी हम सबको छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए हों लेकिन उनकी वाणी, उनका जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
अटल जी पूर्व प्रधानमंत्री माननीय श्री मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। इस भाषण को इन्होंने कहा कि – ‘‘अध्यक्ष महोदय वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। … मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। जय जगत धन्यवाद।’’ उनके इस भाषण में भी उनके विश्व शांति का साधक होने का पता चलता हैं। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था। यह पहला मौका था जब यूएन जैसे बड़े अतंराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी का यह भाषण यूएन में आए सभी प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने खड़े होकर अटल जी के लिए तालियां बजाई थी।
हमारे विद्यालय ने वर्ष 1959 में अपनी स्थापना के पहले दिन से ‘जय जगत’ को अपना ध्येय वाक्य बनाया है। महात्मा गांधी के शिष्य विनोबा भावे ने ‘जय जगत’ अर्थात सारे विश्व की जय का नारा दिया था। अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त कराने के लिए ‘जय हिन्द’ के नारे को अपनाया गया था। 15 अगस्त 1947 के बाद अब प्रत्येक भारतीय का ‘जय जगत’ का संकल्प होना चाहिए। हमारा मानना है कि वसुधैव कुटुंबकम, ‘जय जगत’ तथा विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
अटल जी लोकतंत्र के प्रहरी थे जब कभी लोकतंत्र की मर्यादा पर आँच आई तो अटल जी ने उसका डटकर मुकाबला किया। इसके साथ ही उन्होंने कभी भी राजनीतिक और व्यक्तिगत संबंधों को मिलाया नहीं। यह 1962 की बात है। उस समय अटल जी लखनऊ से सांसद के लिए चुनाव लड़ रहे थे। मैं भी उस चुनाव में अटल जी के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था। इस चुनाव में मैंने उनके खिलाफ प्रचार किया। लेकिन कभी भी अटल जी ने इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया। वह हमेशा गर्मजोशी के साथ मिलते थे। कभी उनके चेहरे पर नाराजगी नहीं आई।
देष के प्रधानमंत्री होते हुए वर्ष 1999 में मैंने उनसे जब अपने विद्यालय द्वारा 6 से 9 अगस्त तक आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय गणित, विज्ञान व कम्प्यूटर प्रतियोगिता ”मैकफेयर इन्टरनेशनल“ में मुख्य अतिथि के रूप में आने का अनुरोध किया तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। इस अवसर पर हमारे विद्यालय के बच्चों द्वारा माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविता ‘हम जंग न होने देंगे’ पर नृत्य भी प्रस्तुत किया गया था। अटल जी विष्व शांति के पुजारी के रूप में भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा सारी दुनिया में शांति की स्थापना हेतु कई कदम उठाये गये। अत्यन्त ही सरल स्वभाव वाले अटल जी को 17 अगस्त 1994 को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया। उस अवसर पर अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘मैं आप सबको ह््रदय से धन्यवाद देता हूं। मैं प्रयत्न करुंगा कि इस सम्मान के लायक अपने आचरण को बनाये रख सकूं। जब कभी मेरे पैर डगमगायें तब ये सम्मान मुझे चेतावनी देता रहे कि इस रास्ते पर डांवाडोल होने की गलती नही कर सकते।’’
5 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्में अटल जी ने राजनीति में अपना पहला कदम 1942 में रखा था जब ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान उन्हें व उनके बड़े भाई प्रेम जी को 23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया था। माननीय अटल जी के नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे एनडीए सरकार के पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने बिना किसी समस्या के 5 साल तक प्रधानमंत्री पद का दायित्व बहुत ही कुषलता के साथ निभाया। उन्होंने एक ऐसी गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व किया था जिसमें 24 दलों के 81 मंत्री थे। अटल जी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी।
उनकी प्रसिद्ध कविताओं की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं – ‘बाधाएँ आती हैं आएँ, घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।’, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं, मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?, ‘हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना, गैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रूखाई कभी मत देना’ से उनकी अटूट संकल्पषक्ति का पता चलता है। अटल जी सदैव दल से ऊपर उठकर देशहित के बारे में सोचते, लिखते और बोलते थे। उनकी व्यक्तित्व इस प्रकार का था कि उनकी एक आवाज पर सभी देशवासी एक जुट होकर देशहित के लिये कार्य करने के लिये सदैव उत्साहित रहते थे। उनके भाषण किसी चुम्बक के समान होते थे, जिसको सुनने के लिये लोगों का हुजूम बरबस ही उनकी तरफ खिंचा आता था। विरोधी पक्ष भी अटल जी के धारा प्रवाह और तेजस्वी भाषण का कायल रहा है। अटल जी के भाषण, शालीनता और शब्दों की गरिमा का अद्भुत मिश्रण था।
आज अटल जी हमारे बीच नहीं रहें लेकिन अटल व्यक्तित्व वाले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल जी हमेशा अपने देशवासियों के साथ ही सारे विश्व के लोगों के हृदय एवं उनकी यादों में सदैव अमर रहेंगे। हमारा मानना है कि अपने जीवन द्वारा सारे विश्व में अटल जी एक कुषल राजनीतिज्ञ व श्रेष्ठ वक्ता के साथ ही विश्व मानवता के सबसे बड़े पुजारी के रूप में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। अपने देश की भाषा, अपने देश की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति पर गर्व करने वाले विश्व शांति के साधक माननीय अटल जी के प्रति हम अपनी हार्दिक श्रद्धा एवं सुमन अर्पित करते हैं