कांग्रेस पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले शनिवार को वरिष्ठ नेता अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया. अपनी नियुक्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए अविनाश पांडे ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘मैं प्रियंका गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेता हूं. प्रभारी महासचिव के रूप में, मैं अपने पद में निहित अधिकारों और मुझे दी गई जिम्मेदारी का निवर्हन करूंगा.’अविनाश पांडे कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं. वह यूपी का प्रभारी महासचिव बनाए जाने से पहले झारखंड में पार्टी के प्रभारी थे. वह ग्रैंड ओल्ड पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी हैं. मूल रूप से महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले और पेशे से वकील अविनाश पांडे पार्टी के स्टूडेंट विंग एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं देते हुए, कांग्रेस में लीडरशिप पोजिशन तक पहुंचे हैं.
अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर के दौरान उन्होंने राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में विभिन्न पदों पर कार्य किया. उन्हें 2010 में महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद के रूप में चुना गया था. अविनाश पांडे महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य और राज्य में कई प्रशासनिक समितियों के सदस्य भी रह चुके हैं. 2018 के राजस्थान चुनाव से पहले उन्हें राज्य का प्रभारी नियुक्त किया गया था.हालांकि, सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जबरदस्त खींचतान के दौरान उन्हें पद से हटा दिया गया था. इसके बाद जनवरी 2022 में, उन्हें झारखंड के प्रभारी AICC महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया. अविनाश पांडे पार्टी के युवा ब्राह्मण चेहरे हैं. उनको राहुल गांधी के कैंप का माना जाता है. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मधुसूदन मिस्त्री के यूपी प्रभारी रहते हुए वह यहां सह प्रभारी हुआ करते थे. चूंकि वह यूपी में काम कर चुके हैं, लिहाजा यहां की राजनीति से वाकिफ हैं.
बता दें कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी लीडरशिप की ओवरहालिंग कर रही है. हाल ही में पार्टी ने अजय राय को यूपी कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था. उनके नेतृत्व में राज्य में पार्टी की नई कार्यकारिणी का गठन भी हो चुका है, जिसमें 16 उपाध्यक्ष, 38 महासचिव और 76 सचिव बनाए गए हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की नई टीम में युवाओं को तरजीह मिली है और करीब 67 फीसदी पदाधिकारियों की उम्र 50 साल से कम है. अति पिछड़ों, अन्य पिछड़ा वर्ग, दलितों और अल्पसंख्यकों को नेतृत्व का मौका देकर कांग्रेस ने जातिगत समीकरण भी साधने की कोशिश की है.